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ज्ञानार्णवः
482) अतः प्रमादमुत्सृज्य भावशुद्धयाङ्गिसततिम् । यमप्रशमसिद्ध्यर्थं' बन्धुबुद्ध्या विलोकय ॥ १० 483 ) यज्जन्तुवधसंजातकर्मपार्क' शरीरिभिः । श्रादौ सह्यते दुःखं तद्वक्तु केन पार्यते ॥ ११ 484 ) हिंसैव नरकागारप्रतोली प्रांशुविग्रहा ।
कुठारीवं द्विधा कर्तुं भेत्तुं शूलातिनिर्दयां ॥१२ 485 ) क्षमादिपरमोदारैर्यमैर्यो वर्धितश्चिरम् । हन्यते स क्षणादेव हिंसया धर्मपादपः ||१३
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482 ) अतः प्रमाद - रे भव्य, अङ्गिसंतति जीवराशि बन्धुबुद्धया भ्रातृबुद्ध्या विलोकय । कया भावशुद्धया । किं कृत्वा । अतः कारणात् प्रमादमुत्सृज्य त्यक्त्वा । किमर्थम् । यमप्रशमसिद्ध्यर्थं व्रतचान्तिसिद्धयर्थमिति सूत्रार्थः ||१०|| अथ हिंसाजन्यदुर्गतिदुःखमाह ।
[ ८.१०
483) यज्जन्तुवध - शरीरिभिः प्राणिभिः श्वभ्रादौ नरकादी यदुःखं सह्यते, तदुःखं वक्तुं केन पार्यंते । न केनापि । कस्मात् । जन्तुवध संजातकर्मपाकात् * जीवहिंसोत्पन्नकर्मविपाकात् । इति सूत्रार्थः ॥ १२ ॥ पुनस्तदेवाह ।
484 ) हिसैव -हिसेव नरकागारप्रतोलीप्रांशुविग्रहा नरकवप्रप्रतोली प्रोच्चत रविग्रहा । पुनः कीदृशी । द्विधा कर्तु ं कुठारीव । भेत्तं "शूलादिनिर्दयेति सूत्रार्थः ॥ १२॥ अथ हिंसास्वरूपमाह । 485) क्षमादि - यः धर्मपादपा यमैर्व्रतैश्चिरं वर्धितः । कीदृशैर्यमैः । क्षमादिपरमोदारैः
इसलिए प्रमादको छोड़कर परिणामोंकी निर्मलतापूर्वक संयम और कषायोपशमको सिद्ध करनेके लिए समस्त प्राणियोंके समूहको बन्धुकी बुद्धिसे - मित्रभाव से - देखना चाहिए ॥१०॥
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प्राणियों के वधसे जो कर्मबन्ध होता है तथा उसका फल जो प्राणियोंके द्वारा नरकादिमें भोगा जाता है उसका वर्णन करनेके लिए कौन समर्थ है ? उसका वचन के द्वारा वर्णन करना अशक्य है || ११||
यह हिंसा नरकरूप घरके भीतर प्रविष्ट होने के उन्नत शरीरवाला ( ऊँचा ) गोपुरद्वार है - जिस प्रकार किसी नगर या विशाल प्रासाद में प्रविष्ट होनेके लिए उसका प्रधान द्वार ही कारण होता है उसी प्रकार नरकोंके भीतर प्रवेश पानेका मुख्य कारण वह हिंसा ही है । वहाँ नरकों में प्राणीके शरीर को खण्ड-खण्ड करने के लिए वह हिंसा कुठारी ( कुल्हाड़ी ) - समान तथा उसको छिन्न-भिन्न करने के लिए वह अतिशय कठोर शूलीके समान है ||१२||
जो धर्मरूप वृक्ष क्षमा मार्दवादिरूप अतिशय महान् संयमोंके द्वारा चिरकालसे
१. M अन्तः प्रमाद | २. M प्रशमशुद्धयर्थं । ३. M पाक:, All others except PM F पाकात् । ४. M कुठारी च । ५. MNT शूलाशुनिर्दया, शूलाविनिर्दयां, BJ शूलादिनिर्दया, CX R शूलो
ऽतिनिर्दया ।
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