________________
- ७ ]
८. अहिंसाम्
477 ) हिंसायामनृते स्तेये मैथुने परिग्रहे । विरतिव्रतमित्युक्तं सर्वसत्त्वानुकम्पकः ॥५ 478 ) सत्याद्युत्तरनिःशेषयमजातैनिबन्धनम् । शीलैश्वर्याद्यधिष्ठानमहिंसाख्यं महाव्रतम् || ६ 479 ) वाक्चित्ततनुभिर्यत्र न स्वप्नेऽपि प्रवर्तते । चरस्थिराङ्गिनां घातस्तदाद्यं व्रतमीरितम् ॥७
477 ) हिंसायामनृते - सर्वसत्त्वानुकम्पकै तीर्थंकरैर्व्रतमित्युक्तम् । इतीति किम् । हिंसायां प्राणिवधे विरतिव्रतम् । अनृते ऽसत्ये वचसि विरतिव्रतमित्यादि प्रत्येकं योज्यम् । स्तेये चौर्ये । च पुनः । मैथुने स्त्रीसेवायाम् । परिग्रहे द्रव्यादिसंग्रहे विरतिव्रतम् । इति व्रतपञ्चकं सूत्रार्थः ||५|| तत्राद्यव्रतमाह ।
१७१
478) सत्याद्युत्तर - अहिंसाख्यं महाव्रतं भवति । कीदृशम् । सत्याद्युत्तरनिःशेषयमजातनिबन्धनं द्वितीय महाव्रतसत्याद्युत्तराणि अग्रस्थानानि शेषाणि समस्तव्रतानि तेषां जातमुत्पन्नं निबन्धनं कारणं यत्तथा । पुनः कीदृशम् । शीलैश्वर्याद्यधिष्ठानं शीललक्ष्म्या मूलमित्यर्थः || ६ || पुनस्तत्स्वरूपमाह् ।
479 ) वाक्चित्त - तदाद्यं व्रतमहिंसाख्यमीरितं कथितम् । तीर्थकरैरिति शेषः । तत्किम् । यत्र व्रते चरस्थिराङ्गिनां त्रसस्थावराणां स्वप्ने घातः न प्रवर्तते । कैः । वाक्चित्ततनुभिर्वचनमनःकायैरिति सूत्रार्थः ॥ ॥ अथ तद्विशेषमाह ।
हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह इन पाँच पापोंके विषय में जो विरति — उनका परित्याग — किया जाता है उसे सब प्राणियोंपर दयाभाव रखनेवाले गणधरादिने व्रत कहा है ॥ विशेषार्थ - हिंसादि पाँच पापोंकी जो विरति (त्याग) की जाती है वह दो प्रकारसे की जाती है - एकदेशरूपसे और सर्वदेशरूपसे । इनमें जो एकदेशस्वरूपसे - स्थूल दृष्टिसे—जो उनका परित्याग किया जाता है उसका नाम अणुव्रत तथा पूर्णरूपसे जो त्याग किया जाता है उसका नाम महाव्रत है । यहाँ चूँकि ध्यानकी मुख्यता है और वह मुनियोंके ही सम्भव है, इसीलिए यहाँ महाव्रत के आश्रयसे ही उसकी प्ररूपणा की जा रही है, इसका स्मरण रखना चाहिए ||५||
अहिंसा नामका महाव्रत आगेके जो सत्य महाव्रतादिरूप समस्त व्रतोंका समूह है उसका कारण है - उन सबकी स्थिति इस अहिंसा महाव्रतके आश्रित है । साथ ही वह अठारह हजार शीलोंके स्वामित्व आदिका भी आधार है - उसके बिना इन शीलोंके स्वामित्व आदिकी सम्भावना नहीं है ||६||
⚫ Jain Education International
जिस व्रत में वचन, मन और शरीर से स्वप्न में भी त्रस स्थावर प्राणियों का घात नहीं प्रवृत्त होता है वह आद्यव्रत -- प्रथम अहिंसा - महाव्रत - कहा गया है ||७||
१. All others except PM NL मैथुने च । २. N यमजाल ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org