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६. दर्शनविशुद्धिः 426 ) यदमी परिवर्तन्ते पदार्था विश्ववर्तिनः ।
नवजीर्णादिरूपेण तत् कालस्यैव चेष्टितम् ॥३७ 427 ) भाविनो वर्तमानत्वं वर्तमानास्त्वतीतताम् ।
पदार्थाः प्रतिपद्यन्ते कालकेलिकदर्थिताः ॥३८ 428 ) धर्माधर्मनभःकाला अर्थपर्यायगोचराः।
___ व्यञ्जनाख्यस्य संबन्धों द्वावन्यौ जीवपुद्गलौ ॥३९ 426 ) यदमी-यद्यस्मात्कारणात् अमी पदार्था नवजीर्णादिरूपेण पर्यायेण परिवर्तन्ते । कीदृशाः पदार्थाः । विश्ववर्तिनः संसारस्थिताः । तत्कालस्यैव चेष्टितमित्यर्थः ॥३७।। अथ वर्तमानादिरूपेण कालमाह।
427 ) भाविनो-पदार्था जीवादयः भाविनो वर्तमानत्वं प्रतिपद्यन्ते स्वीकुर्वन्ति । तु पुनः । वर्तमाना अतोततां प्रतिपद्यन्ते । कीदृशाः। कालकेलिकदर्थिता: कालक्रीडापीडिताः। इति सूत्रार्थ: ॥३८॥ अथ धर्मादीनां पर्यायानाह।
428) धर्माधर्म-परस्परं षड् हानिवृद्धिरूपम् अनन्तासंख्यातभागहानि । अनन्तासंख्यातगुणवृद्धिरूपार्थपर्यायविषयाः । अन्यौ द्वौ जीवपुद्गलौ* व्यञ्जनाख्यस्य संबन्धौ । तत्र शब्दशब्दबन्धहोनेवाला जो समय, आवली, उच्छवास एवं दिन-रात्रि आदिके प्रमाणरूप काल है उसका नाम व्यवहारकाल है ॥३६॥
लोकमें स्थित ये जो सब ही पदार्थ नवीन और जीर्ण आदिके रूपसे अवस्थान्तरको प्राप्त हो रहे हैं, यह सब कालका ही कार्य है ॥३७॥
इस कालके प्रभावसे जो पदार्थ भावी हैं-भविष्य में होनेवाले हैं-वे क्रमसे वर्तमान अवस्थाको प्राप्त होते हैं तथा जो वर्तमान पदार्थ हैं वे अतीत (भूत) अवस्थाको प्राप्त होते हैं । यह सब उस कालकी ही लीला है ॥३८॥
धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चार द्रव्य अर्थपर्यायके गोचर हैं तथा जीव और पुद्गल ये जो दो अन्य द्रव्य हैं वे व्यञ्जन नामक पर्यायसे सम्बन्ध रखते हैं। विशेषार्थद्रव्य और गुणकी अवस्थाविशेषका नाम पर्याय है। वह दो प्रकारकी है-अर्थपर्याय
और व्यञ्जनपर्याय । इनमें जो पर्याय सूक्ष्म, एकसमयवर्ती और वचनके अगोचर है उसे अर्थपर्याय कहा जाता है। यह पर्याय अगुरुलघुगुणके विकारभूत छह प्रकारकी वृद्धि और छह प्रकारकी हानि स्वरूप है। जो पर्याय स्थूल, चिरकाल तक रहनेवाली, वचनके गोचर और छद्मस्थके द्वारा देखी भी जा सकती है उसका नाम व्यञ्जन पर्याय है। यह दो प्रकार की है-स्वभावव्यञ्जन पर्याय और विभावव्यञ्जन पर्याय । इनमें स्वभावव्यञ्जनपर्याय जैसे जीवकी सिद्ध अवस्था और पुद्गलकी अविभागी परमाणु१. L वर्तमानत्वाद्वर्तमानाः । २. J नभः काला पुद्गलैः सह योगिभिः । द्रव्याणि षट् प्रणीतानि जीवपूर्वाण्यनुक्रमात् ।। अर्थपर्याय"..."। ३. M व्यंजनस्य च, N व्यंजनेन च । ४. N संबद्धौ, All others except PN संबन्धी।
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