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________________ - १९ ] ५. योगिप्रशंसा 369 ) हितोपदेशपर्जन्यैर्भव्यसारङ्गतर्पकाः । निरपेक्षाः शरीरे ऽपि सापेक्षाः सिद्धिसंयमे ॥ १६ 370 ) इत्यादिपरमोदारपुण्याचरणलक्षिताः । ध्यानसिद्धेः समाख्याताः पात्रं मुनिमहेश्वराः ॥ १७ 371 ) तव गन्तुं प्रवृत्तस्य मुक्तेर्भवनमुन्नतम् । सोपानराजिकामीषां पदच्छायां भविष्यति ॥ १८ 372 ) ध्यान सिद्धिर्मता सूत्रे मुनीनामेव केवलम् | इत्याद्यमलविख्यातगुणलीलावलम्बिनाम् ॥१९ इति सूत्रार्थः । पुनः कीदृशाः । हितोपदेशपर्जन्यैः भव्यसारङ्गतर्पकाः । पुनः कीदृशाः । शरीरेऽपि निरपेक्षाः । पुनः कीदृशाः । सिद्धिसंगमे सापेक्षाः साभिलाषाः इति सूत्रार्थः । इति षड्भिः कुलकव्याख्यानम् ||१२-१७॥ अथ मुनीनां माहात्म्यमाह । 371 ) तव गन्तुं प्रवृत्तस्य - हे भव्य, मुक्तेर्भवनमुन्नतमुच्चैस्तरमारोढुं प्रवृत्तस्य तस्यामषां पूर्वोक्तमुनीनां पदच्छाया पदकान्तिः सोपानराजिका सोपान पंक्तिर्भविष्यति । इति सूत्रार्थः ||१८|| पुनर्ध्यान सिद्धिर्मुनीनामाह ॥ १२७ 372 ) ध्यानसिद्धिर्मता - सूत्रे परमागमे मुनीनामेव केवलं निष्केवलं ध्यान सिद्धिमंता अभिमता । कीदृशां मुनीनाम् । इत्यादिसर्वोक्तनिर्मलप्रसिद्धगुणलीलाश्रितानाम् ||१९|| अथ योगीन्द्रगुणस्तुतिद्वारा परमनिर्वृतिं याचयन्नाह । शा० । *# से रहित होकर निर्ममत्व हो चुके हैं; जो हितोपदेशरूप मेघोंके द्वारा भव्य जीवोंरूप चातक पक्षियोंको सन्तुष्ट करते हुए शरीर के भी विषय में निरपेक्ष ( निर्मम ) तथा मुक्तिके संयोग में सापेक्ष (अनुरक्त) हैं; इस प्रकार जो इनको आदि लेकर अतिशय उदार और पवित्र आचरणसे पहचाने जाते हैं ऐसे वे महामुनि ध्यानकी सिद्धिके पात्र - उसके अधिकारी कहे गये ।।५-१ ॥ हे भव्य ! मुक्तिके ऊँचे भवन में जानेके लिए उद्यत हुए तेरे लिए उपर्युक्त महामुनियोंके चरणोंकी छाया पायरियोंकी पंक्ति होगी । तात्पर्य यह कि ऐसे निःस्पृह महामुनीन्द्रोंके चरणकमलोंकी आराधना भव्य जीवोंके लिए मुक्तिप्राप्तिका कारण होती है ||१८|| १. B सिद्धसंगमे । २. All others except P तवारोढुं । ४. STF VC XYR पादच्छाया । Jain Education International परमागम में ध्यानकी सिद्धि केवल उन मुनियोंके ही मानी गयी हैं जो कि उपर्युक्त के साथ अन्य भी निर्मल व प्रसिद्ध गुणोंकी क्रीड़ाका आलम्बन लेनेवाले हैं ||१९|| For Private & Personal Use Only ३. M L T F V C X भवनमुत्तमं । www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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