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इस तथ्य की पुष्टि 'शिकागो ट्रिव्यून' में प्रकाशित एक आलेख से भी होती है। वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि माँस अथवा प्रोटीनयुक्त वे भोज्य पदार्थ, जिनमें ट्रिप्टोफेन नामक अमीनो अम्ल नहीं होता है, उनके उपभोग से मस्तिष्क में सिरोटोमिन की कमी हो जाती है और उत्तेजक तंत्रिका संचारकों में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति के मस्तिष्क में तनाव बढ़ जाता है। तनावों के परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर व्यक्ति स्वयं उद्वेलित रहता है, वहीं दूसरी ओर ये तनाव उसमें आपराधिक वृत्ति को जन्म देते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि तामसी एवं राजसी भोजन हमें हिंसक वृत्ति की ओर ले जाता है। फलतः वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में शान्ति समाप्त हो जाती है और हिंसक एवं आपराधिक प्रवृत्तियों को बल मिलता है।
शाकाहार और स्वास्थ्य
मनुष्य को आहार की आवश्यकता अपने को स्वस्थ रखने के लिए ही होती है अतः यह विचार भी आवश्यक है कि शाकाहार और मांसाहार में कौन हमारे स्वास्थ्य के लिए अधिक हितकर है ? विश्व स्वास्थ्य संगठन के बुलेटिन संख्या ६३७ में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख हुआ है कि मांस खाने से लगभग १६० बीमारियाँ हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाती हैं । मांसाहार जहाँ हमारे शरीर में व्याधियों को जन्म देता है, वहीं शाकाहार हमें न केवल उन व्याधियों से दूर रखता है अपितु अनेक व्याधियों की स्वत: ही चिकित्सा कर देता है, क्योंकि अधिकांश औषधियाँ वनस्पतियों से ही उत्पन्न होती हैं । वे वानस्पतिक उत्पाद हैं। मांसाहार के परिणामस्वरूप पशुओं की अनेक बीमारियाँ मनुष्यों में संक्रमित हो जाती हैं। मनुष्य की आँतें मांसाहार के पाचन में उतनी सक्षम नहीं हैं, फलतः मांसाहार अनेक बीमारियों को जन्म दे देता है। वैज्ञानिक गवेषणाओं से यह स्पष्ट हो गया है। शाकाहार जहाँ सुपाच्य है, वहीं मांसाहार दुष्पाच्य है। मानव आंते शाकाहार को २ घण्टे में पचा देती है, जबकि उतनी ही मात्रा के मांसाहार को पचाने में ४ से ५ घण्टे लगते है। आहार का सम्यक् पाचन नहीं होने से ही अनेक रोग जन्म लेते हैं । शाकाहार का अर्थशास्त्र
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सामान्यतया मांसाहार के सम्बन्ध में यह तर्क दिया जाता है कि वह सस्ता होता है और सहज उपलब्ध होता है, किन्तु अब यह सिद्ध हो चुका है कि एक पौण्ड माँस पैदा करने के लिए दस पौण्ड अनाज खर्च करना होता है। सामान्यतया मनुष्य जिन प्राणियों का माँस खाता है वे सब अधिकांशतया शाकाहारी है। उनसे अधिक माँस प्राप्त करने के लिए उन्हें जो भोजन दिया जाता है, वह अनाज ही होता है और यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि पशु के शरीर में यदि एक किलो माँस बढ़ाना है तो उसके लिए उस पर कम से कम दस किलो अनाज खर्च करना होगा। सामान्यतया मांस के लिए जिन पशुओं का उपयोग होता है, वे इसी धरती से अपना पोषण या इसी धरती से उत्पन्न वनस्पतियों से ही अपना पोषण करते हैं । आज आवश्यकता है कि मांसाहार
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