SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 56 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। आठवें दिन योगवाही नीवि-तप करे तथा आठवें आचारप्रणिधान अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। नवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा नवें विनय नामक अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय - दोनों उद्देशको के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। दसवें दिन योगवाही नीवि-तप करे तथा नवें अध्ययन के तृतीय एवं चतुर्थ उद्देशक के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा दसवें सभिक्षु नामक अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। बारहवें दिन योगवाही नीवि-तप करे तथा रतिकल्प नामक प्रथम चूलिका के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में भी योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा विचित्रचर्या नामक द्वितीय चूलिका के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन की अनुमति) की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। चौदहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा दशवैकालिक के श्रुतस्कन्ध के समुद्देश हेतु सभी क्रियाएँ पूर्ववत् एक-एक बार करे। पन्द्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा दशवैकालिक के श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा के लिए नंदी रचना की विधि करे, अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy