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आचारदिनकर (भाग-२) 57 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान नंदीक्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
इस प्रकार दशवैकालिकसूत्र नामक उत्कालिक आगम के अनुसार आगाढ़योग- विधि के पन्द्रह दिन उपर्युक्तानुसार क्रियाए होती हैं। दशवैकालिक के योग का यंत्र इस प्रकार हैं :
१० ।
श्री दशवैकालिक श्रुतस्कन्ध : दिन-१५, नंदी-२ | दिन । १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ६ अध्ययन | श्रु.उ. | २ | ३ | ४ ५ ६ ७ ८ ९
न.१ उद्देशक
१/२ oli
० । ० १ /२ | काउसग्ग ४ | ३ | ३ | ३ | ३ ३ ३ ३ ३
। ।
। ।
३/४
३
| दिन ११ | अध्ययन । १०
उद्देशक - ० | काउसग्ग | ३
१२ १३ ।
१४
१५ ११ प्र.चू. | १२ द्वि.चू. | १३ श्रु.स. | १४ श्रु.अ.न..
० ३ । ३
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मण्डल-प्रवेश नामक श्रुतस्कन्ध के अध्ययन हेतु उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि वाचना का व्यवच्छेद होने से स्कन्दिलाचार्य के समय से ही व्यवच्छिन्न चली आ रही है। परम्परागत आधारों पर ही यह विधि वर्तमान में भी प्रचलित है। मुनि सप्त मण्डलियों में प्रवेश करने के लिए सात आयम्बिल करते हैं। इसमें तीसरे आयम्बिल में उपस्थापना हेतु नंदीक्रिया होती है, किन्तु श्रुत के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु नंदी नहीं होती है। मुनि उपस्थापन या महाव्रत-आरोपण की नंदीविधि के द्वारा ही सम्पूर्ण मण्डलियों में प्रवेश पा लेता है। जैसे :- सूत्रमंडली, अर्थमंडली इत्यादि - ये सात मण्डलियाँ पूर्ववत् ही हैं। यह मण्डलीप्रवेश की विधि हैं।
उत्तराध्ययन में एक ही श्रुतस्कन्ध है। ( इसके योग के लिए योगवाही निम्न क्रिया करे।) - ..
पहले दिन योगवाही आयम्बिल, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उत्तराध्ययन नामक श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन के
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