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आचारदिनकर (भाग-२)
55 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान (अध्यापन कराने की अनुमति) रूप नंदीक्रिया करे। इसकी क्रिया में योगवाही चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, चार बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, चार बार खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करे और चार बार कायोत्सर्ग करे।
__ दूसरे दिन योगवाही निर्विकृति (नीवि) करे एवं द्वितीय श्रामण्यपूर्वक नामक अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) तथा अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे।
तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल करे तथा तृतीय क्षुल्लकाचारकथा अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसमें भी मुखवस्त्रिका-प्रतिलेखन आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत् तीन-तीन बार करे।
__चौथे दिन योगवाही निर्विकृति (नीवि) करे एवं चौथे षड्जीवनिकाय नामक अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत तीन-तीन बार करे। - पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल करे तथा पाँचवें पिण्डैषणा नामक अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय - दोनों उद्देशकों के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
छठे दिन योगवाही नीवि-तप करे तथा धर्म, अर्थ, काम नामक छटें अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा (अध्यापन कराने की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा सातवें वाक्यशुद्धि अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा
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