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आचारदिनकर (भाग-२) 54 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे।
छटवें दिन योगवाही निर्विकृति (नीवि) तप करे और प्रत्याख्यान नामक अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध)
और अनुज्ञा (अध्यापन की अनुमति) की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार सामान्य द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे और तीन बार कायोत्सर्ग करे।
सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा आवश्यक श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् एक बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, एक बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, एक बार खमासमणा सूत्रपूर्वक वन्दन करे और एक बार कायोत्सर्ग करे।
आठवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप करे तथा आवश्यक श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा (अध्यापन की अनुमति) रूप नंदीक्रिया करे इसकी क्रिया में भी योगवाही एक बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, एक बार द्वादशावर्त्तवन्दन करे, एक बार खमासमणा सूत्रपूर्वक वन्दन करे और एक बार कायोत्सर्ग करे।
यह आवश्यकसूत्र के आठ दिन के उत्कालिक आगाढ़योग की विधि है। इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है :
श्री आवश्यक श्रुतस्कन्ध दिन - ८, नंदी - २ | दिन । १ २ ३ । ४ । ५ । ६ । ७ ।
अध्ययन श्रु.उ.न.१ २ ३ ४ ५ ६ श्रु. | काउसग्ग ४' ३ ३ ३ ३ । ३ ।
('श्रुतस्कन्ध उद्देश की नंदी में काउसग्ग-१, तत्पश्चात प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के काउसग्ग-३ - इस प्रकार ४ काउसग्ग)
दशवैकालिकसूत्र के योग की विधि इस प्रकार है :दशवैकालिकसूत्र का भी एक ही श्रुतस्कन्ध है। इसके योग में
पहले दिन योगवाही आयम्बिल करे एवं प्रथम द्रुमपुष्पिका नामक अध्ययन के उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध) एवं अनुज्ञा
श्रू.अ.
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