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________________ आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान गुरु शिष्य को बायीं तरफ करके तीन बार नमस्कार मंत्र बोलकर लघुनंदी पढ़े। "ज्ञान पाँच प्रकार के कहे गए हैं आदि"- इसके पुनः पठनार्थ अमुक साधु के शिष्य अमुक साधु की या अमुक साध्वी की शिष्या अमुक साध्वी की प्रथम वाचना के अन्त में उद्देशनंदी, द्वितीय वाचना के अन्त में समुद्देशनंदी एवं तृतीय वाचना के अन्त में अनुज्ञानंदी होती हैं। वासक्षेप करके गुरु उद्देशनंदी, समुद्देशनंदी तथा अनुज्ञानंदी हेतु नंदीसूत्र की तीन वाचना दे और तीन बार वासक्षेप करे। गुरु गन्ध, अक्षत आदि अभिमंत्रित करे तथा परमात्मा के चरणों का स्पर्श करके क्रमशः वहाँ उपस्थित साधु, श्रावक आदि को दे। सभी उसके सिर पर "नित्थारगपारगो होई", अर्थात् भवसागर को पार करने वाले होओ - यह कहकर वासक्षेप एवं अक्षत डालते हैं। सभी योगोद्वहनों में श्रुतस्कन्ध के आरम्भ एवं समापन में नंदी की यही विधि है - योगोद्वहन में नंदी की विधि के पश्चात् उद्देश आदि की विधि इस प्रकार से है - पहले मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करके योगवाही द्वादशावर्त्तसहित खमासमणासूत्र पूर्वक वंदन करके कहे – “आपकी इच्छा हो, तो आप मुझे अमुक शतक, या अमुक श्रुतस्कन्ध के अमुक वर्ग का, अमुक शतक के अमुक उद्देश के प्रारम्भ का, या अन्त का निरूपण करे।" गुरु कहे - "मैं निरूपण करता हूँ।" तत्पश्चात् पुनः शिष्य खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करके कहे – “आप बताइए कि मैं क्या पढूं ?" गुरु कहे - "वंदन करके प्रतिपादन करो।" पुनः खमासमणासूत्र से वंदन करके शिष्य कहे - "हे भगवन्! आप अमुक श्रुतस्कन्ध के अमुक अध्ययन के अमुक उद्देशक को प्रतिपादित करे" गुरु कहे - "क्षमाक्षमण से प्राप्त सूत्र, अर्थ एवं सूत्र और अर्थ - दोनों से महाव्रत रूपी गुणों का वर्द्धन करो तथा संसार-सागर को पार करने वाले बनो।" पुनः शिष्य कहे - "आप उद्देश दें, अर्थात् सूत्र, अर्थ आदि का प्रतिपादन करे" तत्पश्चात् खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करके कहे -"आपके द्वारा यह प्रवेदित किया गया है। पुनः उसी प्रकार वंदन कर कहे - "इसे मुझे अन्य साधुओं को बताने की अनुज्ञा दें।" गुरु कहे - "बताओ। उद्देश से उसे जानो, समुद्देश से उसे अच्छी तरह से जानो और अनुज्ञा से उसे सम्यक् प्रकार से अवधारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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