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________________ 45 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान लिए, मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- यह कहकर कायोत्सर्ग करे कायोत्सर्ग में नमस्कार का चिन्तन करके सीधा खड़ा हो, दण्डधर द्वारा गृहीत दण्ड को आगे करे। परमेष्ठीमंत्र से कायोत्सर्ग पूर्ण करके दोनों भुजाओं को मिलाकर मुख पर मुखवस्त्रिका लगाकर मौनपूर्वक चतुर्विंशतिस्तव बोलकर दशवैकालिकसूत्र के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय अध्ययन की एक-एक गाथा मौनपूर्वक पढ़े - यहाँ मूलग्रन्थ में प्रथम और द्वितीय अध्ययन सम्पूर्ण और तीसरे अध्ययन का प्रारम्भ मात्र लिया गया है, जिसका भावार्थ निम्न प्रकार से है - “धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रत रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। जिस प्रकार भ्रमर द्रुम-पुष्पों से थोड़ा-थोड़ा रस पीता है, किसी भी पुष्प को म्लान नहीं करता और अपने को भी तृप्त कर लेता है, उसी प्रकार लोक में जो मुक्त (अपरिग्रही) श्रमण साधु हैं, वे दानभक्त (दाता द्वारा दिए जाने वाले निर्दोष आहार) की एषणा में ठीक उसी प्रकार से ही रत रहते हैं, जो बुद्ध पुरुष मधुकर के समान अनाश्रित हैं - किसी एक पर आश्रित नहीं, वरन् नाना पिंड में रत हैं और जो दान्त हैं, वे अपने इन्हीं गुणों से साधु कहलाते हैं - ऐसा मैं कहता हूँ।' - यह द्रुमपुष्प नामक प्रथम अध्ययन समाप्त होता है। द्वितीय अध्ययन :- वह कैसे श्रामण्य का पालन करेगा, जो (विषयराग) का निवारण नहीं करता, जो संकल्प के वशीभूत होकर पग-पग पर विषादग्रस्त होता है। जो परवश या अभावग्रस्त होने के कारण वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री और शयन-आसनों का उपयोग नहीं करता, वह त्यागी नहीं कहलाता। त्यागी वही कहलाता है, जो कान्त और प्रिय भोगों के उपलब्ध होने पर उनकी ओर से पीठ फेर लेता है और स्वाधीनतापूर्वक भोगों का त्याग करता है। समदृष्टि पूर्वक विचरते हुए भी यदि कदाचित् मन (संयम से) बाहर निकल जाए, तो यह विचार कर कि “वह मेरी नहीं है और न ही मैं उसका हूँ, मुमुक्षु उसके प्रति होने वाले विषय-राग को दूर करे। अपने को तपा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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