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________________ आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् द्वादशावर्त्तवन्दन करके और दो बार खमासमणासूत्र से नमस्कार करके कहे - "क्षमाक्षमण को नमस्कार, आपकी अनुमति हो, तो मैं प्रभातकाल की उद्घोषणा करूं" - यह कहकर कालमण्डल में जाएं। फिर वहाँ से आने पर दण्डधर हाथ में रहे हुए दण्ड को कालग्राही सम्मुख स्थापित करे। फिर कालग्रही उसके आगे सीधा खड़ा होकर गमनागमन क्रिया के दोषों का प्रतिक्रमण कर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में परमेष्ठीमंत्र का चिन्तन करे। फिर कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में नमस्कार मंत्र बोले। तत्पश्चात् रजोहरण की दसीओं का प्रतिलेखन करके बैठ जाएं, फिर रजोहरण का तीन बार प्रतिलेखन करे। तत्पश्चात् असंवलित-विधि से रजोहरण के द्वारा तीन बार काल-पाटली का प्रतिलेखन। करे पुनः कालमण्डल में दाएँ पैर के ऊपर रजोहरण को स्थापित करके मुखवस्त्रिका से शरीर के ऊपर के भाग की प्रतिलेखना करे। फिर बाएँ हाथ से कालमण्डल का स्पर्श करके दाएँ हाथ में गृहीत रजोहरण से दोनों पैरों का परिमार्जन करे। दाहिनी जंघा के मूल में मुखवस्त्रिका को संरक्षित करके और बाएँ हाथ में रजोहरण लेकर बैठ जाए। रजोहरण की दसीओं से दाहिने हाथ के ऊपरी और मध्य भाग को स्पर्शित करके कालमण्डल में स्थित होकर, संपुटीकृत दोनों हाथों के अंगूठों के द्वारा नासिका का, दाएँ कान का और बाएँ कान का तीन बार संस्पर्श करे। फिर दोनों हाथों को ऊपर-नीचे करते हुए एक के बाद एक तीन बार आवर्त के द्वारा भूमि का स्पर्श करके दाएँ हाथ में गृहीत रजोहरण से कालमण्डल में स्थित बाएँ हाथ की अंगुली और अंगूठे के बीच में तीन बार प्रमार्जन करके बाएँ जानु से कालमण्डल का स्पर्श करें, दण्डधर कालदण्ड को हाथ में लेकर उसका प्रतिलेखन करके उसे कमर में रखे। इस प्रकार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना के पूर्व तीन बार कालमण्डल की प्रतिलेखना करके, नमस्कारमंत्र बोलकर दण्डिका दण्डधर के हाथ में दे। फिर दोनों हाथों से कालमण्डल को स्पर्श करके दोनों हाथों को पैर से संयोजित कर "निसीही-निसीहीनिसीही, क्षमाक्षमण को नमस्कार" - यह कहकर कालमण्डल में प्रवेश करे और चोलपट्टे की प्रतिलेखना करे - इसकी विधि गुरु के मुख से जानें। फिर सीधा खड़ा होकर कहे - "प्रभातकाल का ग्रहण करने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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