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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 29 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान जो दुष्कृत्यों का त्यागी हो - ऐसा मुनि योगोद्वहन के योग्य माना गया योगोद्वहन कराने वाले गुरु (आचार्य, उपाध्याय, गणी आदि) के लक्षण इस प्रकार से हैं :- शान्त, दयालु, अशट, मधुरभाषी, आचार्य के छत्तीस गुणों से युक्त, आर्जव-मार्दव आदि दस यतिधर्मों से युक्त, योगोद्ववहन से निपुण सम्यक् अवसर को जानने वाला, अर्थात् अवसरज्ञ, परमार्थ को जानने वाला, कुशल, निद्रा, आलस्य, मोह, मद एवं माया को जीतने वाला तथा प्रसन्न चित्तवाला गुरु शिष्य को योगोद्वहन कराने के योग्य होता है। योगोद्वहन में सहायक साधु के लक्षण इस प्रकार हैं :- निद्रा एवं आलस्य को जीतने वाला, उत्साहित करने वाला, स्नेहवान, (गुणानुरागी) गुणों में रत, उद्यमवान्, दयावान्, विषय-कषाय रूप शत्रुओं को जीतने वाला, अनेक आगमों का ज्ञाता, बहुत सत्त्वशाली, अनेक कलाओं में पारंगत, निर्मल एवं प्रसन्न चित्त वाला सहायक-साधु योगोद्वहन के लिए उपयुक्त कहा गया है। अब यहाँ सहायक-साधु के लक्षण बताते है :- दण्ड धारण करने वाला (दण्डधारी), समुदाय, वारणा, अर्थात् रोकने वाला, भिक्षा-प्रमुख, सर्वस्मृतिकार, शब्दरूप धर्मदेशना (ये सब सहायक हैं)। क्षेत्र का लक्षण इस प्रकार है - बहुत पानी हो, भिक्षा सरलता से मिलती हो, स्वचक्र-परचक्र के भय से पूर्णतः मुक्त हो, बहुत से साधु-साध्वी, श्रावकों एवं शास्त्र-विशारदों से आकीर्ण हो, नीर्दोष जल और अन्न से युक्त हो। अस्थि, चर्म आदि से विशेष रूप से रहित हो। सर्प, केंकड़ा, सियाल, छिपकली, मच्छर एवं वृषभ से रहित हों। प्रायः मार्ग साफ-सुथरे हों तथा रोग-मारि से भी हमेशा मुक्त हों, नगर के लोग अल्पकषाय वाले हों, ऐसा क्षेत्र योगोद्वहन के लिए शुभ है। वसति का लक्षण इस प्रकार है - वसति चर्म, अस्थि, दन्त, नख, केश, मल-मूत्र आदि की अपवित्रता से रहित हो, नीचे और ऊपर का भाग छिद्ररहित हो। स्थान शान्ति प्रदान करने वाला, समतल और स्वच्छ छवि वाला हो। योगवाही को सूक्ष्म अंगों वाले जीवों के समूह से युक्त, सर्वत्र दरार वाले आवास वर्जित है। रम्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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