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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान से शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करने पर उस ब्रह्मचारी को क्षुल्लक प्रव्रज्या प्रदान की जाती है। यदि ब्रह्मचर्यव्रत का सम्यक् पालन नहीं होता है, तो वह पुनः गृहस्थधर्म में चला जाता है।
इस प्रकार वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित यतिधर्म से पूर्व में ब्रह्मचर्य व्रत-कीर्तन नामक यह सत्रहवाँ उदय (विभाग) समाप्त होता है।
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