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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 11 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान बड़ा रहे, इस प्रकार का होना चाहिए। चद्दर शरीर परिमाण होती है, अर्थात् साढ़े तीन हाथ लंबी एवं ढ़ाई हाथ चौड़ी होती है। चद्दर दो सूत की एवं एक ऊन की होती है। रजोहरण बत्तीस अंगुल परिमाण होता है। सामान्यतः दंडी चौबीस अंगुल की तथा फलियाँ आठ अंगुल की होती हैं, अथवा दंडी और फलियाँ पूर्वोक्त परिमाण से न्यूनाधिक भी हो सकती हैं, पर ओघे का कुल माप बत्तीस अंगुल का ही होना चाहिए। मुहपत्ति का परिमाण एक बेंत चार अंगुल का है। किसी का मत है कि मुहपत्ति मुख के अनुसार होनी चाहिए। मगध देश सम्बन्धी प्रस्थ के परिमाण से मात्रक कुछ बड़ा होता है। मात्रक वर्षाकाल और शीतोष्णकाल - दोनों में ही आचार्य आदि के लिए द्रव्यग्रहण करने में उपयोगी होता है, अथवा दो कोस चलकर आया हुआ मुनि जितने दाल-भात एक स्थान में बैठकर उपयोग कर सकता है, उतने परिमाण वाला मात्रक होता है। चोलपट्टा दो हाथ या चार हाथ परिमाण वाला, समचौरस होता है। कपड़े की दृष्टि से पतला और मोटा दोनों होता है। ये भेद वृद्धमुनि और युवामुनि की अपेक्षा से समझना चाहिए। संस्तारक और उत्तरपट्ट - दोनों ढाई हाथ लंबे और एक हाथ चार अंगुल चौड़े होते हैं। उपकरणों की उपयोगिता :- वस्तु लेने, उठाने, खड़े रहने, बैठने, करवट बदलने, पाँव फैलाने या एकत्रित करने से पूर्व वस्तु या स्थान की प्रमार्जना करने के लिए रजोहरण उपयोगी है तथा भागवतीदीक्षा का प्रतीक होने से आवश्यक है। संपातिम जीवों की रक्षा के लिए तथा सचित्त रज की प्रमार्जना के लिए मुंहपत्ति आवश्यक है। वसति-प्रमार्जन करते समय साधु मुंहपत्ति से नाक एवं मुख बाँधते हैं। छः काय के जीवों की रक्षा के लिए पात्र रखने की जिनाज्ञा है। एक मंडली में भोजन करने के जो गुण हैं, वे गुण पात्र रखने में भी हैं, अर्थात् पात्र रखने से ही अन्य मुनियों के लिए गोचरी आदि लाई जा सकती है। तृणग्रहण और आग के उपयोग से बचने के लिए, धर्म-शुक्लध्यान में स्थिर रहने के लिए, रोगी की समाधि के लिए तथा मृतक को ढंकने के लिए वस्त्र-ग्रहण आवश्यक है। विकृत, वायुग्रस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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