SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (भाग - २) 152 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान एवं दीर्घ लिंग को ढंकने के लिए तथा वेदोदय की स्थिति में लज्जा बचाने के लिए चोलपट्टे का उपयोग करने की जिनाज्ञा है । अब प्रत्येकबुद्ध एवं स्वयंबुद्ध मुनियों के उपकरण बताए जा रहे हैं जिनकल्पी और स्थविरकल्पी प्रकार के मुनि हैं - १. स्वयंबुद्ध और मुनियों के अतिरिक्त भी दो २. प्रत्येकबुद्ध । स्वयंबुद्ध के भी दो भेद हैं १. तीर्थंकर और तीर्थंकरभिन्न (सामान्य) । - तीर्थंकरभिन्न स्वयंबुद्ध, प्रत्येकबुद्धों की अपेक्षा बोधि, उपधि, ज्ञान और लिंग से अलग होते हैं । स्वयंबुद्ध को बोधि ( धर्म की प्राप्ति) जातिस्मरण आदि आन्तरिक भावों से होती है । उनके बारह प्रकार की उपधि होती है - १. मुहपत्ति २. रजोहरण ३ - ४ - ५. कल्पत्रिक और ६-१२ सात प्रकार का पात्रनिर्योग। स्वयंबुद्ध को श्रुतज्ञान पूर्वजन्म-सम्बन्धी तथा इस जन्म-सम्बन्धी दोनों ही होते हैं । पूर्वाधीन श्रुतवाले स्वयंसंबुद्धों को वेशार्पण देव करते हैं, या वे स्वयं गुरु के पास जाकर वेश ग्रहण करते हैं, परन्तु जिन्हें पूर्वाधीत श्रुतज्ञान नहीं होता, उन्हें तो गुरु ही वेश देते हैं । स्वयंबुद्ध मुनि यदि एकाकी विहार करने में समर्थ है और उसकी इच्छा भी ऐसी है, तो वह एकाकी विचरण कर सकता है। यदि एकाकी विचरण करने में असमर्थ है और ऐसी इच्छा भी नहीं है, तो गच्छ में रह सकता है । प्रत्येकबुद्धों को धर्म की प्राप्ति बैल आदि निमित्तों को देखकर होती है। उनकी जघन्यउपधि मुंहपत्ति एवं रजोहरण है तथा उत्कृष्टउपधि मुंहपत्ति, रजोहरण और सप्तविध पात्रनिर्योग है। उनका श्रुतज्ञान पूर्वभव सम्बन्धी ही होता है। वह जघन्य से ग्यारह अंग का तथा उत्कृष्ट से किंचित् न्यून दसपूर्व का होता है । इनको वेशार्पण देव द्वारा ही होता है। कदाचित् ये लिंगरहित भी होते हैं । प्रत्येकबुद्ध एकाकी ही विचरण करते हैं, गच्छ में नहीं जाते हैं। Jain Education International २. साध्वियों के उपकरण चोलपट्टेरहित और कमढ़क (तुंबा ) सहित पूर्वोक्त चौदह उपकरण साध्वियों के भी होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी उपकरण साध्वियों के होते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy