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आचारदिनकर (भाग - २)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान अर्थात् प्रत्याख्यान (प्रतिज्ञा ) कराएं।" तब गुरु आयम्बिल का प्रत्याख्यान कराते हैं । लोकाचार के लिए नए आचार्य को कंकण बाँधने एवं मुद्रिका पहनाने की क्रिया पूर्व के समान ही की जाती है ।
इस प्रकार आचार्य श्रीवर्द्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में यतिधर्म के उत्तरायण में आचार्य पदस्थापन कीर्तन नामक यह पच्चीसवाँ उदय समाप्त होता है ।
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