SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (भाग-२) 138 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान // छब्बीसवाँ उदय // यतियों की बारह प्रतिमाओं के उद्वहन की विधि यति की बारह प्रतिमाएँ हैं। संहनन अर्थात् शारीरिक संरचना के अनुसार कष्ट को सहन करने में असमर्थ होने के कारण तथा धैर्य, बल और सहनशक्ति के अभाव के कारण इस दुषमकाल में इन प्रतिमाओं का उद्वहन करना दुष्कर कार्य है। आचार्य महागिरि द्वारा इस दुषमकाल में भी जिनकल्प की साधना करने में समर्थ मुनि कोई धृतिमान् धीरमुनि इनमें से कितनी भी प्रतिमाओं की साधना कर सकता है, इसके लिए इनकी विधि बताते हैं। ये बारह प्रतिमाएँ इस प्रकार हैं - "मास के क्रमानुसार एक मास से लेकर सात मास तक की सात प्रतिमाएँ, सप्तरात्रि की तीन प्रतिमाएँ, एक दिन-रात की एक प्रतिमा और एक रात्रि की एक प्रतिमा - इस तरह भिक्षुक की ये बारह प्रतिमाएँ हैं।" १. एकमासिक २. द्विमासिक ३. तीनमासिक ४. चारमासिक ५. पाँचमासिक ६. छ:मासिक ७. सातमासिक पुनः ८. सातरात्रिकी ६. सातरात्रिकी १०. सातरात्रिकी - ऐसी तीन प्रतिमाएँ ११. एक दिन और रात की एक प्रतिमा एवं १२. एक रात की एक प्रतिमा इस प्रकार यति की बारह प्रतिमाएँ हैं। प्रतिमा का उद्वहन करने के योग्य मुनि के लक्षण इस प्रकार से हैं - सम्पूर्ण विद्याओं में निपुण, बुद्धिमान, वज्रसंघयणयुक्त शरीर वाला, महासत्वशाली, जिनमत में सम्यक् श्रृद्धा रखने वाला, स्थिराशय, अर्थात् दृढसंकल्प वाला, गुरु की आज्ञा का पालन करने वाला, ज्ञान श्रुत का धारक, तत्त्वज्ञ, विसृष्ट देहवाला, धीर (धैर्यवान्), जिनकल्प को वहन करने के योग्य, परीषहों का सहन करने वाला, गच्छ का भी ममत्व त्याग करने वाला, धातुदोष का प्रकोप होने पर भी कामभोग की अभिलाषा न करने वाला, नीरस एवं विविध पकवानों के रहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy