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आचारदिनकर (भाग - २)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
बीसवें दिन :- बीसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा चौथे शतक के उद्देश की क्रिया करे। इसके साथ ही चौथे शतक के आदि के चार एवं अन्त के चार ऐसे आठ उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे ।
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इक्कीसवें दिन :- इक्कीसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा नवें और दसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसके साथ ही चौथे शतक के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे ।
बाईसवें दिन :- बाईसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें शतक के उद्देश की क्रिया करे इसके साथ ही पाँचवें शतक के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे ।
तेईसवें दिन :- तेईसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
चौबीसवें दिन :- चौबीसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें और छठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
पच्चीसवें दिन :- पच्चीसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें और आठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
छब्बीसवें दिन :- छब्बीसवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा नवें और दसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसके साथ ही पाँचवें शतक के समुद्देश एवं अनुज्ञा
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