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________________ 86 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। कल्प अध्ययन के छठे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उसके छटें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। आठवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आठवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। नवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। अब ज्ञाताधर्मकथा के योगोद्वहन की विधि का विवेचन है। ज्ञाताधर्मकथांग में दो श्रुतस्कन्ध हैं। यहाँ सर्वप्रथम पहले श्रुतस्कन्ध के योगोद्वहन की विधि का उल्लेख है - प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया छटें अंगसूत्र एवं उसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के उद्देश एवं उसके प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पाँच बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, पाँच बार द्वादशावर्त्तवन्दन करे, पाँच बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं पाँच बार कायोत्सर्ग करे। द्वितीय दिन :- द्वितीय दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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