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________________ आचारदिनकर (भाग - २) काउसग्ग ७ काल ६ अध्ययन १ 9 उद्देशक १५/१६ १७/१८ काउसग्ग ६ ६ て 85 ६ १० नी. स. १६/२० Τ Jain Education International जैनमुनि जीवन के विधि-विधान ६ ६ ६ 99 श्रु.स. ० १ १२ श्रु.अ.नं. ० कल्प, व्यवहार एवं दशासूत्र के भी एक-एक श्रुतस्कन्ध हैं। कल्प के योग में तीन दिन, व्यवहार के योग में पाँच दिन, दशाश्रुतस्कन्ध के योग में बारह दिन इस प्रकार कुल तीनों के योगों के बीस दिन होते हैं तथा दो बार नंदी होती हैं । यहाँ कुछ लोग कल्प और व्यवहार का एक ही श्रुतस्कन्ध बताते हैं; तथा कुछ लोग पंचकल्प के अनुसार व्यवहार एवं दशाश्रुतस्कन्ध का एक श्रुतस्कन्ध बताते हैं । १ निशीथसूत्र के योग उद्देश, अर्थात् वाचना की अपेक्षा से दस दिन के होते हैं । यह कालिक अनागाढ़ योग है, साथ ही आचारांग की पंचम चूला होने के कारण इसमें नंदीक्रिया नहीं होती है । ( किन्तु इन दस दिनों के पश्चात् ग्यारहवें दिन निशीथसूत्र के समुद्देश हेतु एवं बारहवें दिन अनुज्ञा हेतु क्रिया की जाती है। इस अपेक्षा से पूर्व में निशीथसूत्र के योग बारह दिन के भी बताए गए हैं। अतः दोनों मान्यताओं में विशेष भेद नहीं है ।) For Private & Personal Use Only छेदसूत्रों में जीतकल्प और पंचकल्प का समावेश होने से उनके योगों की विधि भी यहाँ बताई गई है। जीतकल्प का योग एक ही दिन का बताया गया है। इसके उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के लिए नीवि तथा एक ही काल का ग्रहण होता । इसमें नंदीक्रिया नहीं होती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तीन बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, तीन बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे तथा तीन बार कायोत्सर्ग करे । पंचकल्प के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु आयम्बिल करे तथा एक काल का ग्रहण करे । इसमें नंदीक्रिया नहीं होती है I www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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