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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
तृतीय दिन :- तृतीय दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तृतीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
__ चौथे दिन :- चौथे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौथे अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे।
इस प्रकार एकान्तर आयम्बिल, नीवि एवं कालग्रहण के द्वारा प्रथम श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्यायों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे तथा इसकी क्रियाविधि में योगवाही प्रतिदिन पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। तत्पश्चात्
बीसवें दिन :- बीसवें दिन योगवाही नंदीक्रिया, आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे।
इस प्रकार ज्ञाता नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग में कुल बीस दिन होते हैं तथा दो बार नंदीक्रिया होती है। यह कालिक अनागाढ़ योग है। ज्ञाता श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास इस प्रकार है :। ज्ञाताधर्मकथा के.प्रथम श्रुत के योग में :- काल-२०, दिन-२०,
नंदी-२ (अनागाढ़ योग)
२| ३ | ४ ५ ६ ७ ८ ६ | १० अध्ययन | अं.उ.नं.श्रु.उ.स.१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ६ १० काउसग्ग
काल | ११ १२ १३ | १४ | १५ | १६ | १७ १८ | १६ अध्ययन | ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ | श्रु.स.अ.नं. काउसग्ग | ३ | ३ ३ | ३ | ३ | ३ | ३ ३ ३
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