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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान समुद्देश एवं अनुज्ञा की एवं छटें अध्ययन के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ चार-चार बार करे। इस प्रकार तीन दिन में छटा अध्ययन समाप्त होता है।
अठारहवें दिन - अठारहवें दिन योगवाही नीवि एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के विमोह नामक सातवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है। साथ ही इसमें सप्तम अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी की जाती है। इसकी क्रिया विधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
- उन्नीसवें दिन - उन्नीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के तीसरे एवं चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे।
बीसवें दिन - बीसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के पाँचवें एवं छटे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
इक्कीसवें दिन - इक्कीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें अध्ययन के सातवें एवं आठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। इस प्रकार सातवां अध्ययन चार दिन में समाप्त होता है।
बाईसवें दिन - बाईसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया आठवें उपाध्यानश्रुत नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है, साथ ही इसमें आठवें अध्ययन के पहले एवं दूसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
प्रकार साता योगवाही पर एवं अनुज्ञापन के सातवें
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