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आचारदिनकर (भाग
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान तेईसवें दिन - तेईसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आठवें अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे ।
चौबीसवें दिन - चौबीसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नवें महापरिज्ञा नामक अध्ययन जो कि व्यच्छिन्न है, के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे। इसके साथ ही आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे । इस प्रकार आचारांग का प्रथम श्रुतस्कन्ध चौबीस दिनों से पूर्ण होता है।
आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास निम्नांकित
आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध : कालग्रहण - २४, दिन- २४, अनागाढ़योग नंदी - २, अंग - १, अध्ययन-८
२
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३/४
६
काल
अध्ययन
उद्देशक
काउसग्ग
१
अं.,उ.,न./श्रु.उ.अ.-१
१/२
१०
काल
र्द
अध्ययन २
३
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उद्देशक ५/६ १/२ ३/४
काउसग्ग ६
६
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काल १६ १७
अध्ययन ६
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६ श्रु.सु. श्रु. अ.न.
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