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________________ आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। इस प्रकार चौथा अध्ययन दो दिन में समाप्त होता है। बारहवें दिन - बारहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया पाँचवें आवन्तिक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है, साथ ही इसमें पाँचवें अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। तेरहवें दिन - तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। चौदहवें दिन - चौदहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें अध्ययन के पाँचवें और छटे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। इस प्रकार पाँचवां अध्ययन तीन दिन में पूर्ण होता है। पन्द्रहवें दिन - पन्द्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया छटें धूवाध्ययन के उद्देश एवं समुद्देश के उद्देश्य से की जाती है। साथ ही इसमें छटें अध्ययन के पहले और दूसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे। सोलहवें दिन - सोलहवें दिन योगवाही नीवि एवं एक काल का ग्रहण करे तथा छटें अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। सत्रहवें दिन - सत्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे। इसमें छटे अध्ययन के पाँचवें उद्देशक के उद्देश, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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