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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास क्रम 106 समणीमा दीक्षा | समणी-नाम | जाति | जन्म संवत जन्म-स्थान | दीक्षा-संवत् तिथि | दीक्षा स्थान विशेष विवरण | समणी ममन प्रज्ञाजी | बागरेचा 28.10.1980 | आसोतरा । 2061 फा.कृ.7 सिरिकारी समणी समीक्षा प्रज्ञाजी | बोथरा 2.9.1981 | लूणकरणसर | 2061 फा.कृ.7 सिरिकारी |समणी सुमन प्रज्ञा जी | छाजेड़ 3.7.1982 | पचपदरा 2061 फा.कृ.7 सिरिकारी समणी श्वेतप्रज्ञाजी चोपड़ा | 21.5.1986 | पचपदरा 2061 फा.कृ.7 सिरिकारी समणी प्रणव प्रज्ञाजी | भंडारी | 20.6.1986 | पचपदरा 2061 फा.कृ.7 सिरिकारी समणी वर्धमान प्रज्ञाजी भटेवरा 6.12.1986 |ब्यावर 7.12.2004 ब्यावर समणी गुरूप्रज्ञाजी | अग्रवाल 2035 हांसी 2061 मा.शु. 2 ब्यावर समणी जिज्ञासाप्रज्ञाजी मेहता 2036 | भुज कच्छ 2061 मा.शु. 2 ब्यावर 112 समणी मैत्रीप्रज्ञाजी डागा श्रीडूंगरगढ़ 2061 मा.शु. 2 ब्यावर समणी सुमेधा प्रज्ञाजी | दूगड़ सरदार शहर 2061 मा.शु. 2 ब्यावर समणी मयंकप्रज्ञा जी | दूगड़ सारदार शहर 2061 मा.शु.2 ब्यावर समणी विशालप्रज्ञाजी| चिंडालिया| 2034 | सरदारशहर 2063 वै.शु. 6 लुधियाना 116 समणी पूर्णप्रज्ञाजी बैद 2038 बंगा 2063 वै.शु. 6 लुधियाना उपसंहार तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ अपने अस्तित्व के उषाकाल में तपस्तेज की मूर्तिमंत देवियाँ दिखाई देती हैं, तप ही इनके जीवन का प्रमुख अंग है। संघ एवं संघनायक के प्रति सर्वात्मना समर्पित रहकर इन्होंने धर्मशासन के प्रति अटूट आस्था की एक सुदृढ़ नींव भी निर्मित की है, जिस पर आज तेरापंथ संघ भीषणतम झंझावातों के मध्य भी अडोल अकम्प खड़ा है। आज भी तेरापंथ श्रमणियाँ तप, संलेखना संथारा आदि के कीर्तिमान स्थापित तो दूसरी ओर इनकी प्रखर साहित्य-साधना उच्चकोटि की विशिष्टता एवं विविधता लिये हुए हैं। अनेकानेक साध्वियाँ अपनी विद्वत्ता से वाग्देवी का वरदान बनी हैं, कई शतावधानी हैं, कई सफल व्याख्यात्री हैं। वर्तमान युग में कई श्रमणियाँ शल्य-चिकित्सा में निष्णात हैं। कला के क्षेत्र में भी इनका अवदान अपूर्व और अनूठा है। इन श्रमणियों ने देश के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचकर जनता को धर्म का संदेश दिया है। यहाँ तक कि नेपाल तक विहार और वर्षावास करने वाली ये जैन समाज की एक मात्र श्रमणियाँ हैं। तेरापंथ समणी-संघ विश्व के कोने-कोने में धर्म का प्रचार कर रहा है, विदेशों में भी इनकी प्रेरणा से ध्यान योग, जीवन-विज्ञान आदि के प्रशिक्षण और प्रयोग शिविर लगते हैं। इस प्रकार आधुनिकतम विज्ञान की अभिनव उपलब्धियों से परिपुष्ट, आत्मविकास की सबलतम मार्गदर्शिका यह अत्यंत प्रगतिशील श्रमणी-समुदाय है। तेरापंथ की अवशिष्ट श्रमणियों का परिचय तालिका में दिया जा रहा है। 886 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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