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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.10.42 श्री रूपांजी 'सरदारशहर' (सं. 1982-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/143 आपका जन्म श्री प्रतापमलजी छाजेड़ के यहां सं. 1972 में हुआ, 11 वर्ष की वय में बीकानेर में आषाढ़ कृष्णा दशमी के दिन आप दीक्षित हुईं। आपका कंठस्थ ज्ञान एवं लिपिकला अच्छी थी। संवत् 1996 से अग्रणी के रूप में लगभग 44 हजार कि.मी. की दर-दर की पदयात्रा कर धर्म का प्रचार-प्रसार किया। आपका कंठ मधर, आवाज था। साहित्य के क्षेत्र में आपकी पुस्तक 'उनकी कहानी मेरी जबानी' में साध्वी प्रमुखा झमकूजी का जीवन संग्रहित है। आपके स्वर्गवास की निश्चित् तिथि ज्ञात नहीं हो सकी। बुलन्द औ 7.10.43 श्री पिस्तांजी 'ऊमरा' (सं. 1983-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/147 आप हरियाणा प्रान्त के ऊमरा ग्राम निवासी श्री सुगनचंदजी अग्रवाल की सुपुत्री थीं। श्री संतोकाजी से प्रेरित होकर 16 वर्ष की वय में लाडनूं में माघ शुक्ला 7 को दीक्षा अंगीकार की। आप ज्ञान, कला, विद्वत्ता में अग्रणी बनकर रहीं, लगभग 51 हजार कि. मी. की पदयात्रा कर आपने अनेक जमींदारों को सुलभबोधि बनाया, सैकड़ों को गुरुधारणा करवाई। तपस्या के मार्ग पर भी आप शूरवीरता से चलीं। संयमी जीवन में आपने उपवास 2557, बेले 207, तेले 93, पचोले 7. अठाई 5, छह, सात और नौ का तप दो बार तथा 10 और 11 का तप एक बार किया। 7.10.44 श्री मोहनांजी 'राजगढ़' (सं. 1983-वर्तमान) 8/148 नाहटा तनसुखदासजी के घर जन्मी मोहनांजी ने साढ़े 10 वर्ष की उम्र में लाडनूं में माघ शुक्ला सप्तमी को दीक्षा अंगीकार की। आपकी योग्यता और वैदुष्य का इससे बढ़कर और क्या प्रमाण हो सकता है कि आचार्यश्री ने 16 वर्ष की अल्पवय में ही आपको 'अग्रणी साध्वी' के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। आपने लाहौर, अमृतसर, आसाम, नेपाल, भूटान, सिक्किम आदि दूरवर्ती क्षेत्रों में सर्वप्रथम पहुंचकर न केवल अपने संघ के लिये पाद-विहार सुलभ करने में योगदान दिया, वरन् धर्म के प्रचार-प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपने आसाम की राजधानी सिलांग की चालू विधानसभा में पहुंचकर अणुव्रत का संदेश दिया, गोहाटी के व्यापारी सम्मेलन में 100 व्यापारियों को एक साथ व्यापारीवर्गीय अणुव्रत नियम ग्रहण कराये। एक वर्ष में आसाम क्षेत्र में 50 विद्यार्थी सम्मेलन और 35 महिला सम्मेलन करवाये। आसाम के मुख्यमंत्री ने आपके किये गये सामाजिक सुधार के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। 7.10.45 श्री कमलूजी 'जयपुर' (सं. 1983-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/149 __ श्री मोतीलालजी बांठिया की सुसंस्कारी कन्या कमलूजी ने 10 वर्ष की उम्र में लाडनूं में माघ शुक्ला सप्तमी को दीक्षा अंगीकार की। प्रत्येक कार्य में आप निपुण थी, रंग-रोगन, विविध चित्रकारी, महीन अक्षर, लिपि आदि अन्यान्य कलाओं में भी आप सिद्धहस्त थीं। इंजेक्शन लगाना, ऑपरेशन करना, दाढ़ आदि निकालना आदि में आपका हाथ सधा हुआ था। आपके विविध गुण व योग्यता के कारण संघस्थ सभी साधु-साध्वी आपको सम्मान की दृष्टि से देखते थे। आप प्रतिवर्ष श्रावण में एकान्तर तप, लगभग 40 उपवास, एक-दो बेले-तेले किया करती थीं। आपकी स्वर्गवास तिथि निश्चित ज्ञात नहीं हो सकी। 841 For Private a Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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