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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
जयपुर में दीक्षा अंगीकार की। ये दोनों मघवागणी के आचार्य पदारोहण के पश्चात् सर्वप्रथम शिष्याएँ थीं। जोधांजी
वर्ष की संयम पर्याय में 108 उपवास, 10 बेले, 3 तेले, 4 चोले तथा दो-दो बार पांच व छह का तप किया। आप सं. 1947 में स्वर्गवासिनी हुईं। लिछमांजी विदुषी साध्वी थीं, 18 वर्ष की वय में ही वे अग्रणी के रूप में विचरण करने लगीं। स्वाध्याय, ध्यान व तप इनके जीवन का प्रमुख अंग रहा। उन्होंने 1000 उपवास, 32 बेले, 3 तेले, एक बार 4, 5, 8 और 58 उपवास की तपस्या की 63 वर्ष संयम पर्याय का पालन कर सं. 2001 में वे दिवंगत हुईं।
7.7.2 श्री जेठांजी 'रतनगढ़' (सं. 1938-45 ) 5/6
आप बीदासर निवासी अमरचंदजी चोरड़िया की पुत्री व रतनगढ़ के श्री भैरुंदानजी दूगड़ की पत्नी थीं। बीकानेर में वैशाख कृष्णा 5 को दीक्षा अंगीकार की। आप प्रकृति से भद्र, विनयी एवं तपस्विनी थीं। अंतिम समय जानकर आपने जब अनशन ग्रहण किया, तो अनेक साधु-साध्वियों ने भी आहार- पानी का त्याग कर दिया । जैसे, श्री किस्तूरांजी ने अनशन पूर्ण होने तक चारों आहार का ज्ञानांजी ने तीन आहार का मुनि चुन्नीलालजी ने उस दिन से पांच दिन तीन आहार का त्याग तथा अन्य 14 साधु-साध्वियों एवं श्रावक श्राविकाओं ने विविध त्यागप्रत्याख्यान किये। साढ़े 6 दिन का तिविहारी अनशन कर आषाढ़ कृष्णा 11 (द्वि.) को आप स्वर्गवासिनी हुईं। 7.7.3 श्री कुन्नणांजी 'कोशीथल' (सं. 1938 से 64 के पूर्व डालिम युग ) 5/7
कुन्णाजी का ससुराल कोशीथल कोठारी गोत्र में व पीहर लासानी में था। पतिवियोग के पश्चात् वैशाख शु. 8 को श्री किस्तूरांजी के द्वारा ये दीक्षित हुईं। सं. 1944 से 48 के मध्य इन्होंने 95 उपवास चार बेले, सात तेले, दो चोले, 15, 16, 17, 19, 20 की तपाराधना करके अपने जीवन को पवित्र बनाया।
7.7.4 श्री सुखांजी 'चंदेरा' (सं. 1940-77) 5/21
आप चंदेरा के सिंघवी गोत्रीय मोडीरामजी की पत्नी थीं। पति-पत्नी दोनों ने सं. 1940 ज्येष्ठ कृ. 5 को उदयपुर में दीक्षा ग्रहण की। सुखांजी बड़ी तपस्विनी थीं, उन्होंने 100 उपवास, 13 बेले, 10 तेले, 5 चोले, 2 नौ तथा 13, 21, 31, 61 उपवास आदि किये। 23 दिन का एक तप किया, जिसमें केवल एक दिन पानी पिया। अंतिम समय 52 दिन का तिविहारी तप पूर्ण कर 53वें दिन ज्येष्ठ शु. 4 सं. 1977 में आप दिवंगत हुईं।
7.7.5 श्री आभांजी 'सरदारशहर' (सं. 1941-96) 5/33
आपका जन्म संवत् 1923 को श्री बींजराजजी बोथरा के यहां हुआ, तथा विवाह बरड़िया परिवार में हुआ पीहर व ससुराल दोनों सरदारशहर में थे। पतिवियोग के पश्चात् आपने 18 वर्ष की वय में ज्येष्ठ शु. 3 को मुनि श्री कालूजी द्वारा दीक्षा अंगीकार की। आपकी सेवाभावना प्रशंसनीय थीं, सं. 1967 से आप अग्रणी साध्वी रहीं एवं धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया। सं. 1996 चैत्र शु. 2 को सरदारशहर में 55 वर्ष का संयम पालकर दिवंगत हुईं।
7.7.6 श्री गुलाबांजी 'सरदारशहर' (सं. 1943-96) 5/46
श्री गुलाबांजी श्री नंदलालजी नाहटा की सुपुत्री थीं। 16 वर्ष की वय में मुनि श्री कालूजी से सरदारशहर में दीक्षा अंगीकार की। सं. 1974 में ये अग्रणी बनकर विचरण करने लगीं। इन्होंने मेवाड़, मारवाड़ में जैनधर्म का
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