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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
वर्तमान में भी अखिल भारतीय समग्र जैन सम्प्रदायों की सूची में श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियों की संख्या साढ़े तीन गुना अधिक है। देखें-साधु-साध्वी तालिका -
अ. भा. समग्र जैन संप्रदाय के साधु-साध्वियों की तालिका, ई. सन् 2004
सम्प्रदाय
कुल श्रमण
| कुल श्रमणियाँ
प्रतिशत
श्रमण
श्रमणी
अंतर
न
1658
6485
20.36
79.68
+59.28
583
2893
16.77
83.23
+66.46
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्वेताम्बर स्थानकवासी श्वेताम्बर तेरापंथी दिगम्बर समुदाय कुल संख्या
154
532
22.45
77.55
+55.10
542
466
53.77
46.23
-7.54
2937
10376
22.06
77.94
+55.98
जैनधर्म में श्रमणियाँ न केवल संयम के 'असिधाराव्रत' पर चली हैं, अपितु उन्होंने रत्नत्रय की परिपूर्णता द्वारा मोक्ष भी प्राप्त किया है। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार इस युग में सर्व कर्म क्षय कर मुक्ति प्राप्त करने वाली सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव की माता 'मरूदेवी' थी। कल्पसूत्र में भगवान ऋषभदेव की चालीस हजार श्रमणियों के मोक्षगमन का उल्लेख है, मुक्त हुई इन साध्वियों की संख्या उनके मुक्त हुए श्रमणों की संख्या से दुगुनी है। इसी प्रकार कल्पसूत्र में भगवान अरिष्टनेमि की तीन हजार, भगवान पार्श्वनाथ की दो हजार और भगवान महावीर की चौदहसौं श्रमणियों के सिद्ध बुद्ध मुक्त होने का उल्लेख है। जबकि उनके मुक्त हुए श्रमण क्रमश: 1500, 1000 एवं 700 हैं। यही नहीं, उन्नीसवें तीर्थंकर प्रभु मल्लीनाथ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार स्त्री थे, वे स्वयं तो परमात्मा बने ही, साथ ही 95 हजार श्रमण-श्रमणी, एवं 5 लाख 53 हजार श्रावक-श्राविकाओं के मार्गदृष्टा एवं मोक्ष-पथ प्रदाता भी बने। उनके शासन में एक हजार श्रमण एवं पाँचसौ श्रमणियाँ कर्मक्षय कर मक्ति को प्राप्त हई। भगवती मल्ली का यह धर्म संस्थापक रूप जैन आचार्यों ने गोपनीय नहीं रखा वरन् विश्व इतिहास की अद्वितीय घटना कहकर मुक्त मन से जैन आगम व साहित्य में स्थान दिया।
दिगम्बर परम्परा यद्यपि स्त्री-मुक्ति की विरोधी है तथापि तमिलनाडु आदि के अनेक शिलालेखों में श्रमणी भट्टारिकाएँ कुरत्तिगल आदि शब्दों के उट्टङ्कन से वे इस बात से सहमत हैं, कि अतीत में अनेक जैन श्रमणियाँ आचार्य व उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित रही हैं। मूलाचार में श्रमणियों के आचार्य होने का उल्लेख है। 90. समग्र जैन चातुर्मास सूची, विशेषांक, ई. 2004, पृ. 3 91. उसभस्सणं अरहओ कोसलियस्स वीसं अंतेवासि-सहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अज्जिया-साहस्सीओ सिद्धाओ।
-संपा. अमरमुनि, सचित्र कल्पसूत्र, सूत्र 197 92. कल्पसूत्र, सूत्र 166, 157,143 93. कल्पसूत्र, पृ. 167
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