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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ (iv) चातुर्मास के पश्चात् दर्शनार्थ आने वाली एवं तपस्विनी साध्वियों का तथा नवदीक्षित एवं दिवंगत साध्वियों का संपूर्ण विवरण तैयार किया जाने लगा। (v) हस्तलिखित ग्रन्थ, पुस्तक- पन्नों आदि पर से एकाधिपत्य निरस्त कर साध्वी प्रमुखा की नेश्राय में दिये जाने लगे। साध्वी प्रमुखा आचार्य को भेंट कर देतीं हैं, आचार्य उन सबको आवश्यकतानुसार साधु-साध्वियों में वितरित कर देते हैं। (vi) सं. 1926 में सरदारांजी ने 121 साध्वियों के नये सिंघाड़े बनाकर साध्वी संघ को व्यवस्थित किया। तब से लेकर आज तक इस संघ में साध्वियों के सिंघाड़े सुव्यवस्थित रूप से पांच की संख्यामें विचरण करते हैं। इस प्रकार साध्वी प्रमुखा सरदारांजी अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी साध्वी थीं। उन्होंने साधिक 30 वर्ष के संयम-पर्याय में आत्म-निर्माण के साथ भिक्षु-शासन के विकास में महायोगदान देकर अपने जीवन को चिर यशस्वी बनाया। साध्वी सरदारांजी का नाम तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में युगों-युगों तक स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित रहेगा। बीदासर में पौष शुक्ला 9 को संवत् 2027 में आपका स्वर्गवास हुआ, उस समय श्रावकों ने 33 खंडी मंडी बनाकर बड़ी धूमधाम के साथ दाह-संस्कार किया। श्रीमज्जयाचार्य ने 'सरदार सुजश' में 15 गीतिकाओं द्वारा आपका गौरव गरिमामय जीवन अंकित किया है। ' 7.5.4 श्री हस्तूजी 'चीवरा' (सं. 1900-12 ) 3/109 आपका ससुराल मेवाड़ के चीवरा ग्राम में 'श्रीमाल' परिवार में तथा पीहर 'ताल' ग्राम में मांडोत परिवार में था । पतिवियोग के पश्चात् फाल्गुन शुक्ला 8 को ताल में दीक्षा ली। आप उग्र तपस्विनी थीं, आपने दीपांजी के सान्निध्य में 130 दिन एवं एकबार 193 दिन का तप 'आछ' के आधार पर किया, जो तेरापंथ संघ में सर्वप्रथम था। इसके अतिरिक्त आपने 60, 45, 37 उपवास की तपस्या भी की। मासखमण तो आपने कई किये । 'पुर' मेवाड़ में आपका संथारा सहित स्वर्गगमन हुआ। 7.5.5 श्री रम्भाजी 'पदराड़ा' (सं. 1901-43 ) 3/120 आपका ससुराल पदराड़ा (मेवाड़) के खोखावत परिवार में तथा पीहर सायरा के सोलंकी गोत्र में था। आपने पतिवियोग के बाद ज्येष्ठ शुक्ला 12 को 'पदराड़ा' में दीक्षा अंगीकार की। आप घोर तपस्विनी साध्वी थीं, आपकी विशाल तपस्या के आश्चर्यजनक आंकड़े इस प्रकार थे - 15 बेले, 10 तेले, 20 चौले, 16 बार छह, 5 अठाई 7 बार नौ, दो बार 10, एक बार 11, 15, 16, 21, 28 और 31 उपवास सिर्फ पानी के आधार पर किये। तथा आछ और पानी के आधार से 10, 15 और 30 का तप दो बार, 11, 13, 14, 18, 19, 20, 22, 29, 31, 46, 53, 63, 142 और 191 का तप एकबार एक छहमासी एक साढ़े 6 मासी तप किया। आपका स्वर्गवास संवत् 1943 में हुआ। 7.5.6 श्री किस्तूरांजी 'मांडा' (सं. 1902-75 ) 3/127 साध्वी किस्तूरांजी का जन्म मांडा (मारवाड़) के गांधी गोत्र में सं. 1886 में हुआ। आप 16 वर्ष की अवस्था 5. शासन-समुद्र भाग - 7. पृ. 169-213 Jain Education International 813 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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