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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास एवं चिकित्सालय तथा सेवाश्रम स्थापित हुए हैं। अपने सेवा और त्याग के बल पर आज ये विश्व के कोने-कोने में फैली हुई हैं और ईसाई धर्म विश्व का सबसे प्रसिद्ध धर्म बना हुआ है। इनमें कुछ प्रमुख विदुषी भिक्षुणियों का परिचय इस प्रकार है 1.8.1 साध्वी मारसेलिना (ई. 354) प्राचीन ईसाई नन्स में Marcellina (मारसेलिना) का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसने रोम के सेंट पीटर चर्च में पोप लिबेरियस से साध्वी-दीक्षा अंगीकार की थी। इसका समय ई. 354 का है। यह एकान्त, शान्त कक्ष में अकेली निवास करती थी।2 1.8.2 साध्वी स्कोलास्टिका (ई. 480) इसी प्रकार ई. सन् 480 में सन्त Beenedict (बेनेटिक्ट) की बहन Scholastica (स्कोलास्टिका) का भी उल्लेख आता है। जो अपने प्रभु की भक्ति में तन्मय हो जाती थी उसे दिन-रात का पता ही नहीं चलता था, प्रभु की कृपा के अनेकों चमत्कार उसके जीवन में घटित हुए थे। जीवन के अंतिम क्षणों में उसने समस्त लौकिक क्रियाओं को छोड़ दिया एवं प्रभु भक्ति में लीन हो गई थी। स्कोलास्टिका ने अपने तप-त्याग पूर्ण जीवन एवं उपदेश से अनेकों नारियों को सदाचार के मार्ग पर अग्रसर किया था। 1.8.3 साध्वी इलिझाबेथ (ई. 1207-31) सन् 1207 में हंगरी एन्ड्र के राजा के यहाँ आध्यात्मिक शक्ति संपन्न इलिझाबेथ का जन्म हुआ, जो खिस्ती जगत में अद्वितीय संत साध्वी के रूप में आदरणीय बनी। इलिझाबेथ का विवाह सेक्सनी के राजा हारमेन के धार्मिक एवं दयालु राजकुमार लूई के साथ हुआ। प्रारंभ से ही इलिझाबेथ स्वाभाविक धर्म विश्वास, ईश्वर के प्रति अगाध निष्ठा एवं दुःखियों के प्रति दयाभावना से ओतप्रोत हृदय वाली महिला थी, खिस्ती साधु जॉन को उसने अपने गुरू के रूप में स्वीकार किया था। उसका संन्यासिनी से भी अधिक संयमित जीवन था। एक उपासना मंदिर की वेदी पर हाथ रख कर उसने पृथ्वी के समस्त वैभव का त्याग कर दिया था। सन् 1231 को इलिझाबेथ ने स्वर्गप्रयाण किया। उसकी मृत्यु के 4 वर्ष पश्चात् रोम के पोप ने उसको SAINT' (साध्वी) पद से सम्मानित किया। उसकी सबसे छोटी कन्या सोपिफया भी अपनी माता की पवित्र स्मृति को हृदय में धारण कर संन्यासिनी बन गई थी। 1.8.4 साध्वी टेरेसा (ई. 1515-82) स्पेन निवासी साध्वी टेरेसा धर्म परायण एवं महान साध्वी थी। एक धर्मनिष्ठ आत्मा में जितने सद्गुण हो सकते हैं वे सभी सद्गुण उसमें थे। इस पुण्यशालीनि साध्वी टेरेसा का जन्म सन् 1515 में हुआ। राजवंश के डी. सेपेडा उनके पिता एवं परम सुन्दरी बियाट्रिस उनकी माता थी सन् 1533 एविला नगरी में संन्यासिनियों के मठ में जाकर 72. Encyclopaedia of World Women, Vol. 2, पृ. 141-142] S.S. Shashi Sundeep Prakashan, Delhi 1989. 73. वही, पृ. 14-15 74. भिक्षु अखंडानन्द, महान साध्विओ, पृ. 21 से 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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