SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्व पीठिका (iv) दोनों ही परम्पराएँ नारी की 'अर्हत् दशा' को स्वीकार करती हैं। जैन धर्म में चन्दना, राजीमती, ब्राह्मी - सुंदरी आदि के दीक्षा लेने के पश्चात् निर्वाण प्राप्ति का उल्लेख आगमों में वर्णित हैं। वहीं बौद्ध- त्रिपिटकों में महाप्रजापति गौतमी, किसागौतमी पटाचारा आदि भिक्षुणियों के अर्हत् पद प्राप्ति का भी उल्लेख है। 'अर्हत्' से अभिप्राय जीवन्मुक्त दशा से है । " 1.7.5 श्रमणी संघ के सम्बन्ध में जैन एवं बौद्ध दृष्टिकोण (वैषम्य-बिंदु ) बौद्धधर्म तथा जैनधर्म के श्रमणी संघ का आलोचनात्मक अध्ययन किया जाय तो दोनों धर्मों में एतद्विषयक कई बातों में वैषम्य दिखाई देता है, यथा (i) बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ बुद्ध से प्रारंभ हुआ था। भगवान बुद्ध भिक्षुणी संघ के संस्थापक थे। जैन धर्म का श्रमणी संघ भगवान महावीर से भी पूर्व भगवान ऋषभदेव से चला आ रहा है। (ii) जैनधर्म में पुरूष एवं स्त्रियों के दीक्षित होने में पूर्वापर क्रम नहीं है, श्रमण एवं श्रमणी दोनों संघों की स्थापना एक ही दिन हुई थी। बौद्धधर्म में भिक्षु संघ की स्थापना के कई वर्ष पश्चात् भिक्षुणी संघ की स्थापना का उल्लेख है। भिक्षुणी संघ स्थापना की तिथि भी विवादास्पद है। कुछ विद्वान् पाँच वर्ष पश्चात् एवं कुछ बीस वर्ष पश्चात् मानते हैं। (iii) जैन परम्परा में श्रमणी बनने के लिये स्त्रियां स्वतन्त्र हैं, उन पर उनके संस्थापकों का कोई प्रतिबंध नहीं है। बौद्ध परम्परा में बुद्ध की इच्छा को प्राथमिकता थी। उन्होंने स्त्री एवं पुरूष दोनों में से केवल पुरूष का ही चुनाव किया था । (iv) बौद्ध परम्परा में भिक्षुणी बनने के लिये महाप्रजापति गौतमी को जैसे बार-बार अनुनय करना पड़ा, वैसा जैन परम्परा में श्रमणी बनने के लिये किसी नारी को महावीर से अनुनय नहीं करना पड़ता। वे संसार के दुःखों से मुक्ति पाने के लिये भगवान के चरणों में दीक्षा की प्रार्थना करती हैं, तो भगवान उनकी भावनाओं का मात्र हृदय से स्वागत ही नहीं करते वरन् उन्हें इस श्रेयस्कर पथ पर कदम बढ़ाने हेतु समय मात्र भी प्रमाद न करने की प्रेरणा भी देते हैं । " 1.8 ईसाई धर्म में संन्यस्त महिलाएँ ईसाई धर्म में जैनधर्म की ही भांति संन्यस्त महिलाओं की अपनी संस्थाएँ हैं। इनमें मूलतः दो संप्रदाय प्रमुख है - रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्ट । रोमन केथोलिक ईसा व मरियम की पूजा-अर्चना करते हैं और प्रोटेस्ट मूर्तिपूजा के विरोधी हैं। किंतु दोनों संप्रदायें Bible को अपना धर्मग्रन्थ मानती हैं। रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय में पादरियों के अतिरिक्त नॅनस (Nuns) भी होती हैं। जिन्हें Mother कहते हैं। ये ब्रह्मचारिणी होती हैं तथा गिरजाघर (Church) में रहती हैं, इनके मुख्य दो कार्य हैं - ज्ञानदान और सेवा । इस सद् उद्देश्य को लेकर ईसाई धर्म-संघ द्वारा सैंकड़ों शिक्षण संस्थाएँ 69. सुत्तनिपात 2/1/15 70. डॉ. कोमल जैन, बौद्ध एवं जैन आगमों में नारी जीवन, पृ. 173, तुलनीय जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ, पृ. 7 71. अन्तकृद्दशांग सूत्र, वर्ग 5 Jain Education International 17 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy