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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ है कि इस प्रति को आर्या चंपाजी ने विरधिचंदजी कोटा वाले देवजी स्वामी के शिष्य को सं. 1915 में सायपुरा में बहराया। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.184 आर्या रत्तुजी (सं. 1903 ) नवत्तत्त्व की प्रतिलिपि में उल्लेख है कि इसे सं. 1903 में आश्विन शु. 10 बुधवार को आर्या रत्तुजी की शिष्या विलासजी ने लिखा । प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दि. (परि. 90/30 ) में संग्रहित है। 6.7.185 आर्या गुमानांजी (सं. 1903) तैतीस बोल के थोकड़े की प्रतिलिपि सं. 1903 में आर्या गुमानांजी ने दिल्ली में की 1536 सं. 1904 की जिहाना बाद की प्रति श्री जिनचंद्रसूरिकृत' जिनकुशलसूरि अष्ट प्रकारी पूजा' में भी आर्या गुमानां का नामोल्लेख है। 37 6.7.186 अज्ञात लिपिकर्त्री (सं. 1904 ) सं. 1904 में उदयपुर शहर में रायचंद स्वामी की शिष्या ने 'आलोयणा' की प्रतिलिपि की। साध्वी का नाम निर्देश नहीं है। लेखन सुन्दर है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम में संग्रहित है। 6.7.187 आर्या गुलाबांजी (सं. 1907) श्री रायचंदजी की परंपरा के कुशालचंदजी की रचना 'अर्हद्दास चरित्र' (सं. 1879) की प्रतिलिपि सं. 1907 में श्री फतांजी चतरूंजी की शिष्या गुलाबांजी ने किसनगढ़ में की। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.188 आर्या चनणांजी की शिष्या (सं. 1909 ) क्षमाकल्याणकृत 'देवकी चौपाई' सं. 1909 की लिपिकर्त्ता में चनणांजी की शिष्या का उल्लेख है, यह प्रति बिलाड़ा (राज.) में लिखी गई थी । 438 6.7.189 आर्या उदेकंवरजी (सं. 1909 ) 'विपाकसूत्र' की सं. 1909 वैशाख शु. 14 शुक्रवार की प्रतिलिपि में आर्या गवरांजी की शिष्या उदेकंवरजी ने जोधपुर में की। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दि. में है। 6.7.190 आर्या गोगांजी (सं. 1911-31 ) आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में आर्या गोगांजी की भिन्न-भिन्न संवत् एवं स्थान में लिखी गई 4 प्रतियां उपलब्ध हुई हैं। (1) सं. 1911 ज्येष्ठ कृ. 2 को कीसनगढ़ में लिखी गई ' कृष्ण रूक्मिणी को ब्याहला', (2) सं. 1911 कार्तिक शु. 14 शुक्रवार को ऋषि आसकरण कृत 'गजसिंह कुमार की चउपई' (रचना सं. 1852) (3) सं. 1923 ज्येष्ठ कृ. 2 मंगलवार को मालपुरा में लिखित 'नंदीसूत्र' की प्रति (4) सं. 1931 आश्विन कृ. 12 बुधवार को किसनगढ़ में लिखित रामविजयकृत 'शांतिनाथ चरित्र' । उक्त सभी प्रतियों में इन्होंने अपनी गुरूणी परम्परा का भी उल्लेख किया है- महासती राजाजी की शिष्या - पनाजी भागांजी गोगांजी। 536. राज, हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 5 क्र. 831 ग्रं. 5878 537. वही, क्र. 493 ग्रं. 6999 (24) 538. राज. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 3, क्र. 826 ग्रं. 12542 Jain Education International 715 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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