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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
6.7.15 साध्वी माना (सं. 1668 )
संवत् 1668 में चेला विमलसी ने देवेन्द्रसूरिकृत कर्मग्रन्थ का बालावबोध साध्वी मानां को पठनार्थ दिया। इसकी प्रति वीरमगाम संघ के भंडार में है। इन्हीं के लिये सं. 1668 में उर्णाकपुर में 'नवतत्त्व स्तबक' की प्रति तैयार करने का भी उल्लेख है । यह प्रति नित्यविजय लायब्रेरी चाणास्मा में संग्रहित है। साध्वी मानांजी ऋषि सोमजी की शिष्या थीं। 493
6.7.16 साध्वी मानां (सं. 1670)
सं. 1670 चैत्र शु. 14 सोमवार की हस्तलिखित 'श्री एकविंशति स्थानक प्रकरणम्' की प्रतिलिपि में साध्वी माना के वाचनार्थ लिखवाने का उल्लेख है। कर्त्ता व लिपिकार का नाम नहीं है। प्रति श्री विजय लब्धिसूरि ज्ञान भंडार खंभात में मौजूद है 1494
6.7.17 साध्वी चांपा (सं. 1672)
खरतरगच्छ के उपाध्याय समयसुंदरकृत 'प्रियमेलकरास' की प्रतिलिपिकर्त्री के रूप में साध्वी चांपा का नामोल्लेख है। लिपि समय 1672 एवं लिपि स्थान मेड़ता दिया है। अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर (पो. 15 नं. 1590 में यह प्रति है। 495
6.7.18 साध्वी लीला (सं. 1684)
ऋषि भोजक ने सं.1684 चैत्र कृ. 5 रविवार को पाटण में रामजी के गृह में तपागच्छीय कुशलसंयम रचित 'हरिबल नो रास' (सं. 1555) लिखकर साध्वी लीला को पठनार्थ दिया। इसकी प्रति डायरा उपाश्रय नो भंडार पालनपुर (दा. 36 ) में है । 496
6.7.19 आर्या सोभागदे (सं. 1695 )
‘दण्डकद्वार' की लिपिकर्त्री के रूप में इनका नामोल्लेख हुआ है। 497
6.7.20 देवी आर्या (सं. 1698 )
श्री सज्जन ऋषि ने निकोद नगर में देवी आर्या के वाचनार्थ 'सीता सती रास' (रचना सं. 1687) की प्रतिलिपि सं. 1698 वैशाख कृ. 3 शुक्रवार को दी। प्रति आचार्य सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है ।
493. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 352
494. अ. म. शाह, श्री प्रशस्ति संग्रह, पृ. 176, प्रशस्ति संख्या 697
495.
गु. क. भाग 2, पृ. 328
जै. 496. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 209
497. राज. हिं. हस्त. ग्रं. सू. भाग - 4, क्रमांक 1951 ग्रंथांक 14313
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