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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास जो बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 1363) में संग्रहित है। एक आर्या सुखी का उल्लेख हीरालालजी दुगड़ ने किया है, उसने सं. 1649 में औपपातिक सूत्र' की प्रतिलिपि की। जिनभद्रगणि शाखा की पंजाब की महासाध्वी हैं। 491 6. 7.8 आर्या वालो (सं. 1653 )
ये आर्या टहको की शिष्या थीं, सं. 1653 में इनका 'उपासकदशासूत्र' की प्रतिलिपिकर्ता के रूप में उल्लेख है। प्रति बी. एल इन्स्टी. दि. (परि. 1353) में है।
6.7.9 साध्वी हीरा (सं. 1653 )
इनका सं. 1653 में 'कल्याणमंदिर स्तोत्र बालावबोध' की लिपिकर्त्री के रूप में उल्लेख है 1492
6.7.10 आर्या निहालो (सं. 1657 )
इनकी दो हस्तलिखित प्रति सं. 1657 की बी. एल इंस्टी. दिल्ली में मौजूद है, एक 'आषाढ़भूति का चोढालिया' दूसरी ‘कल्पसूत्र' ये दोनों प्रति 'कैलाषर' स्थान पर लिखी गई थी। परिग्रहण संख्या क्रमशः 8262 तथा 2602 है। कल्पसूत्र प्रति में इन्होंने अपने को आर्या लक्ष्मी की शिष्या कहा है।
6.7.11 आर्या पुरां (सं. 1660 )
ये आर्या रूपां की शिष्या थी, सं. 1660 की 'समवायांग सूत्र' की प्रतिलिपिकर्त्री के रूप में इन्होंने अपना परिचय दिया है। बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 1257) में इनकी हस्तलिखित प्रति है ।
6.7.12 आर्या सता (सं. 1661 )
ये आर्या रूपांजी की शिष्या थी, सं. 1661 की इनकी प्रतिलिपि की हुई 'उपासकदशासूत्र' आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में मौजूद है।
6.7.13 आर्या बीबी (सं. 1664 )
ये आर्या साहिबा की शिष्या थी। श्री सामहराय अग्रवाल की अपभ्रंश भाषा में रचित 'प्रद्युम्नचरित्र' की सं. 1664 में इन्होंने प्रतिलिपि की थी। प्रति बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 6341 ) में मौजूद है।
6.7.14 आर्या केसरी (सं. 1668 )
ये आर्या नगीना की शिष्या थीं, इनकी सं. 1668 की 'चतुर्विंशति दण्डक विचारपत्र' की प्रतिलिपि बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 563) में संग्रहित है।
491. मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म, पृ. 389
492. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रंथों की सूची, भाग 2 क्रमांक 92, ग्रंथांक 7891
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