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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.6.1.3 उपप्रवर्तनी श्री सज्जनकुंवरजी (सं. 1979) उपप्रवर्तनी श्री सज्जनकंवरजी का जन्म मेवाड़ प्रान्त के 'बानसेन' ग्राम में पिता श्री कालूरामजी गोलेच्छा हमीरगढ़ निवासी एवं माता श्रीमति हीरकंवरबाई की कुक्षि से वि. सं. 1971 श्रावण शुक्ला पंचमी के दिन हुआ। आठ वर्ष की अल्पायु में अपनी माताजी श्री हीरकुंवरजी के सान्निध्य में श्री पानकंवरजी के पास 'रूपायेली' ग्राम में संवत् 1979 मृगशिर शुक्ला 5 के दिन जैन आहती दीक्षा अंगीकार की। 32 आगम, सैंकड़ों थोकड़े एवं संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, गुजराती आदि विविध भाषाओं की प्रकाण्ड पंडिता महासतीजी ने अपने जीवन में जन-कल्याण के भी अनेकों कार्य किये। राजस्थान के डूंगला ग्राम के बाहर जहां वर्षों से नवरात्रि व दशहरे के दिनों में सैंकड़ों मूर्गों और बकरों की बलि चढ़ा करती थी, वहाँ आपश्री की वाणी और तप के प्रभाव से बलि प्रथा बंद हो गई। आपके दर्शन एवं मांगलिक श्रवण के लिये लोगों की भीड़ लगी रहती थी। आप सादड़ी में स्थिरवास रहीं, वहीं स्वर्गवासिनी हुई। 102 वर्ष की उम्र में 75 वर्ष तक संयम की उत्कृष्ट साधना करने वाली महास्थविरा साध्वी चम्पाकंवरजी आपकी ही शिष्या थीं।15 6.6.1.4 श्री दिलीपकंवरजी (सं. 2015) आपने चूरू निवासी वक्तावरमलजी पोरवाल के यहां जन्म लिया, सं. 2015 चै. शु. पूर्णिमा को चौथ का बरवाड़ा में विरदीकंवरजी के पास आपकी दीक्षा हुई। आपने पंडित परीक्षा, जैन सिद्धान्त प्रभाकर आदि परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर धार्मिक अध्ययन को ठोस बनाया। महाराष्ट्र, मराठवाड़ा राजस्थान आदि में विचरण कर अनेकों में धर्म की ज्योति जागृत की, आपके सदुपदेश से कई लोग जैन बने, मद्य-मांस का परित्याग किया। आपका साहित्य-वृद्धि जीवन परिचय, वृद्धि सागर बोल माला आदि प्रकाशित हैं। आपकी 3 शिष्याएँ हैं-श्री । कुसुमकंवरजी, भक्तिप्रभाजी, अरूणप्रभाजी।416 6.6.1,5 प्रवर्तिनी श्री प्रभाकुंवरजी (सं. 1999) आपका जन्म सं. 1984 श्रावण शुक्ला 5 को 'डोंगरसेवली' ग्राम में हुआ। आप जब संयम पथ पर आरूढ़ होने जा रही थीं, तो विरोधियों ने दीक्षा रोकने के लिये कोर्ट में केस कर दिया, ब्रिटिश का राज्य होते हुए भी धर्म के प्रभाव से रविवार के दिन कोर्ट खुली, फैसला आपके पक्ष में हुआ और ठीक समय पर सं. 1999 फाल्गुन शु. 2 सोमवार के दिन बुलढाणा में आपकी दीक्षा हुई। आपकी तेजस्विता, ऊर्जस्विता, गहन शास्त्रज्ञान देखकर सं. 2057 चैत्र कृ. 8 शनिवार को 'लातुर' ग्राम में सहस्रों नर-नारियों की उपस्थिति में 'प्रवर्तिनी पद' प्रदान किया गया। आपश्री के सदुपदेश से अनेक स्थानों पर जैन पाठशाला, जैन ग्रंथालय एवं जैन स्थानकों का निर्माण हुआ। आपकी लेखनी से निःसृत साहित्य में 'तपोयोगी, संघर्ष से सौरभ, ध्रुव तारिका, कुमारपाल चरित्र पर एकांकी, अढ़ाई अक्षर आदि प्रमुख हैं। आपने अनेक श्रमणियों को तो जिनशासन में दीक्षित किया ही साथ ही श्रमणवर्ग को भी उपदेश देकर संयममार्ग का पथिक बनाया. श्री विवेकमनिजी, श्री श्रुतप्रज्ञजी श्री अक्षयप्रज्ञाजी आदि श्रमण आपकी ही देन हैं।17 415. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड-3, पृ. 356 416-417. पत्राचार से प्राप्त सामग्री के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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