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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.6.1 कोटा-सम्प्रदाय की श्रमणियाँ : कोटा सम्प्रदाय के प्रारंभकाल में ही 26 महापंडित मुनि और 1 पंडिता महासाध्वी का उल्लेख प्राप्त होता है, यह साध्वी कौन थी कब दीक्षित हुई, इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती। जिन अतीतकालीन साध्वियों का इतिहास हमें प्राप्त हुआ है उनमें सर्वप्रथम नाम तपस्विनी श्री सीताजी का आता है। तत्पश्चात् अध्यात्मसाधिका श्री रूपाजी, संयम आराधिका श्री मेदाजी, श्री राधाजी, तप आराधिका श्री वीरजाजी, वात्सल्य वारिधि श्री बीसाजी, जिनशासनचन्द्रिका श्री माऊजी का है। आपके पश्चात् श्री बड़ाकंवरजी हुईं, ये घोर तपस्विनी थीं, अंतिम समय में 52 दिन के संथारे के साथ सं. 1937 में भानस का हिवड़ा ग्राम में स्वर्गवासिनी हुई, उल्लेख है कि 52 दिन तक ही वहाँ 'नाग' के दर्शन होते रहे। तदनन्तर आत्मसाधिका श्री फत्ताजी, तपस्विनी श्री चंद्रकुंवरजी एवं ज्ञानवारिधि श्री सूर्यकुंवरजी हुईं। इनके विषय में कोई उल्लेखनीय जानकारी उपलब्ध नहीं हुई। इनके पश्चात् श्री गुलाबकुंवरजी महासाध्वी हुई। कोटा संप्रदाय की इन साध्वियों के विषय में एक दोहा भी प्रचलित है बीसाजी मोटी सती, सूर्यकंवरजी महान। गुलाब संयम से सुवासित पाखंड भंजन जाना2 6.6.1.1 श्री गुलाबकुंवरजी (सं. 1950 के लगभग) आपका जन्म औरंगाबाद के श्रेष्ठी श्री अमरचंदजी के यहां हुआ। तथा विवाह नासिक निवासी बड़ी हवेली वाले श्री अमोलकचंदजी निमाणी से हुआ। आपकी दीक्षा नासिक में हुई। आप दृढ़ संयमी, आचारवान महाविदुषी तथा परम पंडिता थीं, आपके पास अनेक संत-सती अपने प्रश्न भेजते और समुचित समाधान प्राप्त करते थे, आपने हस्तलिखित शास्त्र भी अनेक संतों की सेवा में समर्पित किये। 13 वर्ष तक आप कोटा में स्थिरवासिनी रहीं, और वहीं अंतिम संलेखना संथारा करके स्वर्गवासिनी हुईं।413 6.6.1.2 प्रवर्तिनी श्री मानकंवरजी (वि. सं. 1969-2040) मध्यप्रदेश के रामपुरा-मानपुरा, के निकट 'सांगरिया' ग्राम में पिता देवीलालजी एवं माता श्रीमति शोभादेवी सेठिया के यहां आपका जन्म हुआ। 9 वर्ष की अल्पायु में ही बोलिया ग्राम निवासी श्री मलूकचंदजी के साथ विवाह और तत्पश्चात् वैधव्य ने आपको वैराग्य की ओर उन्मुख किया। 13-14 वर्ष की वय में वि. सं. 1969 मृ. शु. 2 के शुभ दिन नाहरगढ़ में श्री गुलाबकंवरजी म. के चरणों में आपने दीक्षा ली। आपकी धैर्यता, व्यवहारकुशलता, विनय, विवेक इत्यादि गुणों से प्रभावित होकर 3 वर्ष की अल्प दीक्षा पर्याय में ही चतुर्विध श्री संघ ने कोटा में आपको प्रवर्तिनी पद पर विभूषित किया। आप विदर्भ सिंहनी के नाम से भी प्रख्यात थीं। सं. 2040 वैशाख शु. 4 को जालना में 45 शिष्या-प्रशिष्याओं का विशाल श्रमणी संघ जिनशासन को समर्पित कर आप दिवंगत हुईं। 412. महासती श्री केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड-3, पृ. 351 413. प्रव. श्री प्रभाकुंवरजी म. सा. से प्राप्त सामग्री के आधार पर 414. उपर्युक्त आधार 672 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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