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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
भानजी श्री मानकुंवरबाई इन तीन महासतियों के दीक्षा ग्रहण करने का उल्लेख है, इन्हीं से वृद्धि को प्राप्त हुई। इस शाखा में सैंकड़ों श्रमणियाँ हुईं हैं।278
6.5.3.1 महासती श्री मानकुंवरबाई (सं. 1815)
मानकुंवरबाई गोंडल संप्रदाय की प्रभावशालिनी महासाध्वी थी। आप सौराष्ट्र देश के 'मांगरोल' ग्राम में 'बदाणी' परिवार से संबंधित थीं। वि. सं. 1815 कार्तिक कृ. 10 को आचार्य श्री रत्नसिंहजी महाराज के सान्निध्य में दीवबंदर (सौराष्ट्र) गांव में आपकी दीक्षा हुई। आपकी वाणी का जादू और तप-संयम का इतना उत्कृष्ट प्रभाव था, कि जो भी चरणों में आता वह कुछ न कुछ व्रत-प्रत्याख्यान ग्रहण करके जाता। आपने अनेकों भव्यात्माओं को सम्यक्दृष्टि प्रदान की, अनेकों मुमुक्षु आत्माएँ श्रावक-व्रतों को ग्रहण करने वाली बनीं, और अनेक आत्माओं को संयम पथ पर लगाया। श्री डाह्यीबहन, रतनबहन, कड़वीबहन, गंगाहन, माणेकबहन आदि उच्च कुल की वधुओं ने आपके पास दीक्षा ग्रहण की। आचार्य डुंगरसिंहजी महाराज आपके धर्म प्रेरित कार्यों से अत्यंत प्रसन्न थे। वि. सं. 1861 में जब आचार्यश्री ने चतुर्विध श्रीसंघ के कल्याणार्थ 45 साधु-साध्वियों की नेश्राय में सम्मेलन किया, तब आप साध्वी प्रमुखा के रूप में वहाँ उपस्थित थीं। गोंडल संप्रदाय की वर्तमान श्रमणीवृंद की आप मूलनायिका साध्वी हैं।279
6.5.3.2 महासती श्री गंगाबाई (स्वर्ग. सं. 1909)
आप गोंडल गच्छ की आद्य प्रवर्तिनी मानकुंवरबाई महासतीजी की संसारी बहन जूठीबाई की सुपुत्री थी, 11 वर्ष की नन्हीं वय में माता-पुत्री दोनों ने दीक्षा अंगीकार करली। आपकी बुद्धि अत्यन्त तीक्ष्ण एवं ध्यान साधना उत्कृष्ट थी। एकबार आप माणावदर में विराजमान थीं, आपके रूप-सौन्दर्य के पिपासु तीन-चार मुस्लिम भाई मध्य रात्रि में वहाँ आये, साध्वीजी उस समय ध्यान में तल्लीन थी, उनके ध्यान एवं संयम के प्रभाव से कुदृष्टि रखने वाले उन भाइयों के पांव जमीन से चिपक गये, वे अंधे और गूंगे बन गये। सारी रात वे इसी स्थिति में रहे, प्रातः श्रावकों ने उन्हें देखा। श्रावकों की प्रेरणा से उन्होंने महासतीजी के पास प्रतिज्ञा की, कि भविष्य में हम कभी भी किसी औरत को खराब दृष्टि से नहीं देखेंगे। पश्चाताप करने पर वे स्वस्थ हो अपने घर पहुंचे। आपकी सहनशीलता भी गजब की थी। एक रात्रि जब आप सो रही थीं, कि चूहों ने आपकी देह को कुतर लिया, असह्य वेदना को शांत भाव से सहन कर कुछ ही दिन में आप इस क्षणभंगुर देह से मुक्त हो गईं।280
6.5.3.3 मोटा श्री दुधीबाई महासती (सं. 1931-83)
श्री मोहनलालजी महाराज की आप भगिनी एवं धर्मपरायण पिता हेमशीभाई खोडा व माता वेलुबाई की सुपुत्री थीं। 11 वर्ष की वय में विवाह और अल्प समय में वैधव्य के दुःख ने इनको वैराग्य की ओर मोड़ दिया। श्री मानकुंवरबाई, श्री डाह्याबाई व श्री मूलीबाई महासतीजी का सुयोग प्राप्त होने से सं. 1931 में उन्हीं के चरणों में संयम ग्रहण किया। आप अत्यंत विनयशील एवं मेधावी साध्वी थीं। संयम के प्रति जागरूक थीं। अंग्रेजी दवा 278. गिरधारलाल सवचंद दोशी, गोंडल गच्छ दर्शन, पृ. 51 279. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड 3, पृ. 345 280. गोंडल गच्छ दर्शन, पृ. 51
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