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6.5 क्रियोद्धारक श्री धर्मदासजी महाराज तथा गुजरात-परम्परा
क्रियोद्धारक श्री धर्मदासजी स्वामी के 99 शिष्यों में 22 शिष्य प्रमुख हुए, जिनमें प्रथम शिष्य मुनि श्री मूलचन्दजी स्वामी थे, वे सं. 1723 में अहमदाबाद में दीक्षित हुए, संवत् 1764 में वे आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए, इनके सात शिष्य थे, इन सातों शिष्यों के द्वारा गुजरात के पृथक-पृथक् संप्रदायों की नींव पड़ी, वह इस प्रकार है- (1) श्री गुलाबचन्द्रजी के शिष्य नागजी से सायला संप्रदाय (2) पंचायणजी से लींबड़ी संप्रदाय ( 1718), (3) श्री वनाजी, श्री कानजी (बड़े) से बरवाला संप्रदाय (4) श्री बनारसी स्वामी के शिष्य श्री उदयसिंहजी, श्री जयसिंहजी से चूड़ा संप्रदाय, ( 5 ) श्री विट्ठलजी के शिष्य श्री भूषणजी, श्री वशरामजी से ध्रांगध्रा अथवा बोटाद संप्रदाय, ( 6 ) श्री इन्द्रचंद्रजी से कच्छ आठकोटि संप्रदाय (सं. 1856) (7) श्री इच्छाजी के शिष्य रामजीऋषि (छोटे) से उदयपुर संप्रदाय ।
उपशाखाएं – लींबड़ी संप्रदाय के संस्थापक पंचायणजी के शिष्य श्री रत्नसिंहजी, श्री डुंगरसीजी से गोंडल संप्रदाय (सं. 1845), गोंडल संप्रदाय के संस्थापक श्री डुंगरशीजी के शिष्य श्री गंगाजी, श्री जयचन्दजी से गोंडल संघाणी संप्रदाय । लींबड़ी संप्रदाय के पंचम पट्टधर श्री अजरामरजी स्वामी के पंचम पट्टधर श्री गोपालजी से लींबड़ी गोपाल संप्रदाय प्रारंभ हुई। इन्हीं में 'हालारी' और 'वर्धमान' सम्प्रदाय भी है। कच्छ आठ कोटी के संस्थापक श्री इन्द्रचंद्रजी के चतुर्थ पट्टधर श्री किरसनजी हुए इनसे कच्छ आठ कोटी नानी पक्ष और मोटीपक्ष इस प्रकार दो विभाग हुए। इनमें श्री लवजीऋषिजी की परंपरा के श्री मंगलऋषिजी की खंभात संप्रदाय व श्री धर्मसिंहजी की दरियापुरी संप्रदाय मिलाकर गुजरात में कुल 16 संप्रदायें अस्तित्व में आईं। इनमें 'सायला', सम्प्रदाय में दो साधु हैं, साध्वियाँ नहीं। 'चूड़ा' और 'उदयपुर' सम्प्रदायें विलुप्त हो गई हैं, इनमें कोई साधु-साध्वी नहीं है। 'हालारी' संप्रदाय में संघ प्रमुख स्थविर श्री केशवमुनिजी तथा श्री नानजी महाराज की आज्ञा में श्री कमलाबाई, श्री वनिताबाई श्री वसुमतीबाई तथा श्री प्रज्ञाबाई ये 4 महासतीजी वर्तमान हैं। वर्धमान संप्रदाय में शतावधानी श्री पूनमचंद्रजी महाराज के शिष्य संघनायक श्री निर्मलमुनिजी की आज्ञा में तपस्विनी श्री रूक्मणीबाई, श्री शोभनाबाई आदि 6 साध्वियाँ हैं। इनका विशेष इतिवृत्त ज्ञात नहीं है। शेष संप्रदायों और उनकी श्रमणियों का वर्णन अग्रिम पंक्तियों में अंकित कर रहे हैं।
6.5.1 लिंबड़ी अजरामर सम्प्रदाय ( संवत् 1718 से वर्तमान )
6.5.1.1 प्रवर्तिनी श्री सुजाणबाई आदि पांच आद्य श्रमणियाँ ( दीक्षा सं. 1718-1739)
आचार्य श्री धर्मदासजी महाराज के प्रमुख शिष्य आचार्य श्री मूलचन्द्रजी स्वामी की आज्ञानुवर्तिनी पांच साध्वियाँ थीं- श्री सुजाणबाई, श्री सुंदरबाई, श्रीनिर्मलाबाई श्री गंगाबाई श्री जमनाबाई । ये पांचों बहनें सूरत के जैन ओसवाल परिवार से संबंधित थीं, आचार्य श्री धर्मदासजी महाराज द्वारा सूरत में ही संवत् 1718 वैशाख शुक्ला 13 को इन सबने दीक्षा अंगीकार की। इनमें श्री सुजाणबाई सबसे ज्येष्ठ थीं, वे प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित की गई, उनके प्रवर्तिनी पद प्रदान का समय जयपुर (राज.) संवत् 1723 माघ शुक्ला अष्टमी का है। 16 वर्ष इस पद पर रहकर संवत् 1739 आषाढ़ शुक्ला द्वितीया के दिन स्वर्गवासी हुईं। 242
242. अजरामर विरासत (स्मृति ग्रंथ), पृ. 153, 177, श्री स्था. जैन लींबड़ी अजरामर संप्रदाय, लींबड़ी (गु.) 2003 ई. (प्र. सं.)
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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
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