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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
38.
श्री हर्षज्ञाबाई
39. श्री श्रेयाबाई
40.
श्री श्रुतिबाई
41.
श्री माधुरीबाई
42.
श्री चेतनाबाई
43.
44.
श्री समीक्षाबाई
अमदाबाद
श्री शीतलबाई खम्भात
2047
2049
2049
2049
2052
2057
2059
मृ. कृ. 5 गुरू.
मृ.शु. 7 शनि.
223. स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास, पृ. 293
224. वही, पृ. 293
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मु. शु. 7 शनि.
वै.शु. 10.
मा. शु. 13 शुक्र.
मा. शु. 11 रवि.
मा. शु. 5 शुक्र.
6.4 क्रियोद्धारक श्री धर्मसिंहजी महाराज व दरियापुरी संप्रदाय की श्रमणियाँ :
लोकागच्छ में आयी शिथिलता के विरूद्ध क्रियोद्धार करने वालों में आचार्य धर्मसिंहजी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। आपने संवत् 1675 माघ शु. 13 को यति श्री शिवजीऋषि के सान्निध्य में जामनगर में दीक्षा अंगीकार की । आगमों का अध्ययन करने के पश्चात् आपने जाना कि तत्कालीन साधु आचार-व्यवस्था आगम-विरूद्ध है, आपने एतद्विषयक चर्चा गुरू से की, गुरू श्री शिवजीऋषि ने क्रियोद्धार करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की, अतः आपने गुरू की आज्ञा लेकर 16 साधुओं के साथ अहमदाबाद के दरियापुरी दरवाजे पर वि. सं. 1685 वैशाख शु. तृतीया को क्रियोद्धार किया। 223 आपकी समूची परंपरा दरियापुरी सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान में श्री शांतिलालजी स्वामी इस संघ के नायक हैं। इस संघ की यह उल्लेखनीय विशेषता है कि अपने उद्भवकाल से लेकर आज तक 386 वर्षों की सुदीर्ष अवधि से यह एक आचार्य के नेतृत्व में गतिशील हैं। इस संप्रदाय की साध्वियों का उल्लेख विक्रम की 20वीं सदी से मिला है, 20वीं सदी के प्रारंभ में श्री झलकबाई, जड़ावबाई के पास श्री नाथीबाई ने दीक्षा अंगीकार की थी। स्थानकवासी जैन परम्परा के इतिहास में आचार्य धर्मसिंहजी की माता श्रीमती शीवाबाई का सं. 1675 में श्री धर्मसिंहजी के साथ ही दीक्षित होने का उल्लेख है,224 किंतु इन्होंने किसके पास दीक्षा ली दरियापुरी संप्रदाय की प्रथम साध्वी कौन थी, यह परम्परा आगे किस प्रकार चली, इसकी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हुई।
6.4. 1 श्री नाथीबाई (सं. 1961-2032 )
दरियापुरी संप्रदाय की प्रभावशालिनी साध्वीजी के रूप में श्री नाथीबाई महासतीजी का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। आपका जन्म साबरकांठा जिले के प्रांतीज ग्राम में सं. 1933 को पिता लल्लुभाई एवं माता गुलाबबहन के यहां हुआ। 12वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ, कुछ ही समय बाद पति का वियोग होने से आपने श्री झलकबाई की शिष्या श्री जड़ावबाई के पास मृगशिर शु. 7 सं. 1961 में दीक्षा अंगीकार कर ली। दीक्षा के पश्चात् दशवैकालिक उत्तराध्ययन आदि आगम, 100 स्तोक, लगभग 300-400 सज्झाय, संस्कृत-व्याकरण, प्राकृत आदि का अच्छा अभ्यास किया। आपके हृदय में जैनशासन के अभ्युदय की प्रबल भावना रहती थी, तपस्या के पीछे होने वाले आडम्बर को अपने सदुपदेश द्वारा बंद करवाकर आपने संघ हित में श्रेष्ठ कार्य किया। शाहपुर में यह
अहमदाबाद
विलेपार्ले
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