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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.3.2.100 श्री सुषमा जी (सं. 2032 से वतर्मान)
आपका जन्म राजपुरा ग्राम के चौधरी दीवानसिंह जी राठी के यहां ई. 1956 में हुआ। आप श्री सुंदरीदेवी जी की चचेरी बहन एवं शिष्या हैं। गन्नौर मंडी में आपकी दीक्षा हुई। आप जैन एवं जैनेतर दर्शन की गहन अध्येता हैं, गायन कला मधुर होने से आप 'जैन कोकिला' के नाम से विख्यात हैं, साथ ही तपस्विनी भी हैं।196
6.3.2.101 डॉ. श्री सुनीताजी (सं. 2034 से वतर्मान)
तप्त तपस्विनी, तप रत्नेश्वरी के विरूद से अर्चित डॉ. सुनीताजी ने संवत् 2017 को मोगा मंडी के सुश्रावक श्री जगदीशलाल जी जैन (नाहर) के यहां जन्म लिया। संवत् 2034 जून 13 को मोगा मंडी में ही श्रमण श्री फूलचन्दजी महाराज के श्रीमुख से दीक्षा अंगीकार कर श्री सुमित्राजी की शिष्या बनीं। इन्होंने आगमों के गंभीर अध्ययन के साथ संस्कृत में एम. ए. की परीक्षा देकर स्वर्णपदक प्राप्त किया। अपनी विचक्षण मेधा से धर्म व दर्शन में भी एम. ए. करके 'आचारांगसूत्रः एक आलोचनात्मक अध्ययन' विषय लेकर पटियाला विश्वविद्यालय से इन्होंने सन् 1994 को पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। ज्ञान आराधना के साथ-साथ डॉ. सुनीताजी ने मालेरकोटला में 117 उपवास करके तप के क्षेत्र में भी कीर्तिमान स्थापित किया है। इसके अतिरिक्त दो-तीन निर्जल अठाई, 16 वर्षों से एकासना, आयंबिल आदि तप भी करती रहती हैं। सुनीताजी अध्ययन व तप के साथ नि:स्वार्थ सेवाभाविनी, सरल स्वभावी, स्पष्टवक्ता, सदा प्रसन्नचित्त शासनप्रभाविका भी हैं।
6.3.2.102 श्री प्रियदर्शनाजी (सं. 2036 से वर्तमान)
आपका जन्म संवत् 2019 को उदयपुर के श्रीमान् आनंदीलालजी मेहता के यहां हुआ। हैदराबाद में सं. 2036 अक्षय तृतीया को आचार्य श्री आनंदऋषिजी म. सा. से दीक्षा अंगीकार कर आप श्री विजयश्रीजी 'आर्या' की शिष्या बनीं। आप मधुरवक्ता, कवियत्री एवं सुलेखिका हैं। आपने जैन सिद्धान्ताचार्य, साहित्यरत्न व एम. ए. किया है। 5 वर्षों से आप अग्रणी के रूप में विचरण कर धर्मप्रभावना के अनेक कार्य कर रही हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हैं - जैन जयति शासनम्, तत्त्वार्थसूत्रः जिज्ञासा एवं समाधान, जैन गणितमाला, श्रीमद् राजचंद्र संस्मरणों के आईने में, प्रश्नों के आकाश में समाधान का सूर्य, श्रावक व्रत आराधना, ऋषभ चरित्र। इन्होंने कई उपवास, बेले तेले के साथ 15,16 उपवास, आयंबिल का मासक्षमण, ज्ञानपंचमी, पुष्यनक्षत्र एकासन का वर्षीतप आदि तपस्याएँ की हैं। इनकी दो शिष्याएँ हैं-श्री विचक्षणा श्री जी, श्री देशनाश्रीजी।198
6.3.2.103 श्री किरणजी (सं. 2036 से वर्तमान)
आप अंबाला के श्री अमरकुमार जी जैन (भाबू) की सुपुत्री हैं। सं. 2036, 31 मई को श्री सुधाजी महासती के पास दीक्षा अंगीकार की। आपकी प्रवचन शैली अत्यंत आकर्षक एवं मधुर है। भजनों की छटा तो निराली ही है, आपने जहां भी चातुर्मास किये वहाँ नवयुवतियों में बालिकाओं में विशेष उत्साह पैदा किया। अंबाला में 196. संयम-सुरभि, पृ. 160 197. जीवन-परिचय; आचारांग सूत्र एक आलोचनात्मक अध्ययन : डॉ. सुनीता, बहादुरगढ़, ई. 2004 198-201. प्रत्यक्ष सम्पर्क से प्राप्त सामग्री के आधार पर
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