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6.3.2.96 श्री सुमित्राजी श्रीसंतोषजी (सं. 2027 से वर्तमान)
आप दोनों भगिनी युगल तप, संयम, सेवा और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। श्रमणसंघीय आचार्य श्री शिवमुनि जी महाराज के ताऊ श्री बनारसीदासजैन, मलोटमंडी निवासी की सुपुत्रियाँ हैं। मलोट में ही दीक्षा अंगीकार कर ये श्री शिमलाजी की शिष्या बनीं। दीक्षा के पश्चात् से आप दोनों सतत तपस्या व स्वाध्याय में संलग्न हैं। कई निर्जल अठाइयाँ, उपवास, बेले, तेले, चौले आदि कर चुकी हैं। चातुर्मास में एक साथ नौ-नौ अठाइयाँ 17 वर्षों से लगातार वर्षीतप की आराधना, अठाई के पारणे में भी एकान्तर तप करना इनके तपोमय जीवन की बहुत बड़ी विशेषता है। सर्दी में गर्म वस्त्र का त्याग, किसी से सेवा लेने का त्याग आदि अनेक प्रकार के त्याग से इनका जीवन सुसज्जित है। 192
6.3.2.97 श्री निर्मलाजी (सं. 2029 से वर्तमान )
आप मलौट मंडी जि. फिरोजपुर (पंजाब) के श्री चिरञ्जीलालजी की सुपुत्री हैं। आचार्य सम्राट् श्री शिवमुनिजी की आप लघु भगिनी हैं, आपने उनके साथ ही 17 मई 1972 को मलौटमंडी में पंडित ज्ञानमुनिजी से दीक्षा ग्रहण की, एवं श्री कौशल्याजी की शिष्या बनीं। आपने जैन सिद्धान्तशास्त्री तक अध्ययन किया। साथ ही वर्षीतप, कई अठाइयाँ 31 और 33 उपवास, आयम्बिलों की लड़ी आदि तपस्याएँ की हैं। 193
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.3.2.98 डॉ. श्री पुनीतज्योतिजी (सं. 2031 से वर्तमान )
आप तप चक्रेश्वरी, महासती मोहनमालाजी की शिष्या हैं संवत् 2009 आपका जन्म व संवत् 2031 अप्रैल 28 को आपकी दीक्षा हुई। आपने 'सन्तत्रयी के काव्य में जैनदर्शन के तत्व' विषय पर डॉ. विष्णुदत्त शर्मा के निर्देशन में शोध प्रबन्ध लिखकर सन् 1996 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप ऊर्जस्वल, तेजोमयी व्यक्तित्व की धनी साध्वी हैं। शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य आपकी प्रेरणा से हुए और हो रहे हैं। आपकी शिष्याएँ - श्री श्वेताजी, श्री निधिज्योतिजी, श्री मुक्ताजी, श्री अक्षीताजी, श्री स्वातिजी, श्री पल्लवीजी, श्री विपुलजी प्राञ्जलजी, जागृतिजी आदि हैं। 194
6.3.2.99 श्री भारती श्रीजी (सं. 2031 से वर्तमान )
आप बड़ौत (उ. प्र.) के श्री ज्योतिप्रसादजी जैन की सुपुत्री हैं, सन् 2006 को आपका जन्म हुआ। संवत् 2031 आसोज शुक्ला 5 को उपाध्याय श्री केवलमुनिजी महाराज के मुखारविन्द से बम्बई खार में आप दीक्षित हुईं। आप श्री कौशल्यादेवीजी महाराज की शिष्या हैं। आप की काव्य-कला उत्कृष्ट है, आशु कवियत्री भी हैं, 400 के लगभग गीत, 1000 मुक्तक, दोहे आदि रचे हैं। साथ ही घोर तपस्विनी हैं, आयंबिल की 11 ओलियाँ के अतिरिक्त कई लंबी तपस्याएँ 121, 101, 91, 81, 71, 51, 31, 11 बार 21 आयंबिल तथा 4 वर्षीतप उपवास के, एक वर्षीतप पोला अट्टम के साथ, सतत 2 वर्ष, 5 वर्ष तक एकासन, 300 तेले, 4, 5, आदि तप कर चुकी हैं। इन्होंने विभिन्न 5 क्षेत्रों में वीर बालिका मंडल तथा एक ब्राह्मी महिला मंडल की स्थापना की है। 195
उद्धृत
192. डॉ. साध्वी सुनीताजी 'आचारांगसूत्रः एक आलोचनात्मक अध्ययन" की प्रस्तावना से 193. उपप्रवर्तिनी कौशल्यादेवी जीवन-दर्शन, पृ. 106
194. परिचय पत्र के आधार पर
195. परिचय पत्र के आधार पर
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