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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास से प्रेरित होकर दिल्ली से 'महिला प्रतिभा एवार्ड', महासती प्रवर्तनी पार्वती अवार्ड, अम्बैसडैर फॉर पीस अवार्ड' का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। आपकी दो शिष्याएँ हैं- श्री गुरूछायाजी, श्री गुरूप्रियाजी । 187
6.3.2.91 उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री सरिताजी (सं. 2021 से वर्तमान )
आपका जन्म सन् 1951 में जींद के निकटवर्ती ग्राम खेड़ी ( भगतों की) में श्री भगतरामजी जैन के घर हुआ। नौ वर्ष की अल्पायु में विद्वद्रत्न श्री रामकृष्णजी महाराज से 'जींद' में ही दीक्षा ग्रहण कर आप श्री शशिकांताजी की शिष्या बनीं। अध्ययन की अदम्य लालसा से आपने डबल एम. ए. तक की शिक्षा प्राप्त की, साथ ही जैन आगम - साहित्य का भी तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया। आपने सन् 1994 में डॉ. आर. एन. मिश्रा के निर्देशन में मेरठ युनिवर्सिटी से आचार्य पुष्पदंत कृत 'जसहरचरियं में जैनधर्म संस्कृति और दर्शन' विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखकर पी. एच. डी. की डीग्री प्राप्त की। आपकी वाणी में ओज व माधुर्य का संगम है, विद्वत्ता और विनम्रता के मणिकांचन संयोग ने आपको 'श्रमणीसूर्या' के रूप में प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचन्द्रजी महाराज द्वारा अलंकृत किया गया है। आप आठ वर्षों एकान्तर तप की आराधना में संलग्न हैं। डेराबस्सी में जैन युवक मंडल, जैन साध्वी शशिकांता युवती मंडल, जैन महिला मंडल, एस. एस. जैन संघ मंडी गोविन्दगढ़, श्री आदिनाथ जैन समिति (रजि.), श्री जैन साध्वी शशिकान्ता चैरिटेबल एवं वेलफेयर सोसाइटी (रजि.), जैन साध्वी सरिता शुभ चैरिटेबल ट्रस्ट आदि संस्थाओं की आप प्रेरणा स्रोत हैं। संघ उन्नति में आपका सक्रिय योगदान प्रत्येक क्षेत्र में अंकित है । 188 आपकी कई शिष्याएँ हैं।
6.3.2.92 श्री सुधाजी (सं. 2022 से वर्तमान)
आपका जन्म ई. 1943 को पंजाब के पट्टी नगर में श्री त्रिलोकचंदजी के घर हुआ, जो श्री स्वर्णकांता जी के भ्राता थे। आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज की अंतिम घड़ियों में समता, सहिष्णुता के दर्शन कर वैराग्य जागृत हुआ, फलस्वरूप कैंथल में श्री प्रेमचंदजी महाराज से सर्वविरति दीक्षा अंगीकार कर आप श्री स्वर्णकांताजी की शिष्या बनीं। आप गूढ़ गंभीर अध्येत्री एवं शांत, सहज स्वभावी हैं। आपने दो वर्षीतप एवं अठाइयाँ आदि की है । 189 आपकी शिष्याओं का परिचय तालिका में दिया गया है।
6.3.2.93 उपप्रवर्तिनी श्री रमेशकुमारीजी (सं. 2023 से वर्तमान )
आपका जनम रिंढ,ण, ग्राम के श्री मोतीरामजी के यहां हुआ। श्री जगदीशमतीजी के पास 14 वर्ष की वय में मालेरकोटला में दीक्षित हुईं आपने अपने जीवन को तप से सजाया है, मासखमण, 17, 11, 10, 24 अठाई, 65 बेले, लगभग 1008 तेले एवं एकाशने के 501 109, 120 आदि स्तोक पांच बार किये हैं। आप प्रभावसंपन्ना साध्वी हैं, आपके उपदेश से महासती जगदीशमति सिलाई स्कूल, प्री प्रेट्री स्कूल, चंदनबाला युवती मंडल आदि प्रारंभ हुए हैं। आप सबको जप-तप की प्रेरणा देती हैं। आपकी छह शिष्याएँ - श्री संतोषजी, श्री सुयशाजी एम. ए. श्री सारिकाजी, श्री शमांजी, श्री राजेशजी, श्री शिल्पाजी हैं। श्री रिद्धिजी और श्री सिद्धिजी पौत्र शिष्याएँ हैं। 190 185 188. पत्राचार से प्राप्त सामग्री के आधार पर
189. महाश्रमणी अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 53 190. परिचय पत्र के आधार पर
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