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________________ अध्याय 1 पूर्व पीठिका 1.1 अध्यात्म प्रधान भारतीय संस्कृति भारतीय संस्कृति एक अध्यात्ममूलक संस्कृति रही है। वैदिक, औपनिषदिक साहित्य, जैन आगम और बौद्ध त्रिपिटक के द्वारा जो अध्यात्म-धारा भारतीय ऋषि-मुनियों ने प्रवाहित की थी वह आज भी विश्व के लिये प्रेरणास्रोत बनी हुई है। भारतीय संस्कृति का मूल संदेश दया, दान और इन्द्रिय दमन है। यद्यपि विदेशियों ने भारत पर अनेक बार आक्रमण किये, किंतु वे भारतीय संस्कृति के इन मूल तत्त्वों को नष्ट नहीं कर सके। भारतीय संस्कृति का अध्यात्म-दीप अनेक झंझावातों में भी सदा जलता रहा। 1.2 भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ : ब्राह्मण संस्कृति और श्रमण संस्कृति भारतीय संस्कृति एक होते हुए भी मूलतः दो धाराओं में प्रवाहित हुई है-एक वैदिक संस्कृति और दूसरी श्रमण संस्कृति। ब्राह्मण संस्कृति का मूल आधार वैदिक साहित्य रहा है। वेदों में जो कुछ भी आदेश और उपदेश उपलब्ध होते हैं, उन्हीं के अनुसार जिस परम्परा ने अपनी जीवन-पद्धति का निर्माण किया, वह परम्परा वैदिक संस्कृति कहलाई और जिस परम्परा ने वेदों को प्रामाणिक न मानकर आध्यात्मिक ज्ञान, आत्म-विजय एवं आत्म-साक्षात्कार पर विशेष बल दिया वह श्रमण संस्कृति कहलाई। ब्राह्मण संस्कृति मूलतः प्रवृत्ति प्रधान संस्कृति रही है। भौतिक सुख-सुविधाओं की उपलब्धि ही उनका प्रधान और अंतिम लक्ष्य है, अतः उन्होंने ऐहिक जीवन में धन, धान्य पुत्र, सम्पत्ति आदि की प्राप्ति की कामना की, तो पारलौकिक जीवन में स्वर्ग प्राप्ति को ध्येय बनाया और यह सब देवताओं की कृपा व प्रसाद पर निर्भर है, ऐसा मानकर वे एक ओर देवताओं को प्रसन्न करने के लिये स्तुति और प्रार्थनाएँ करने लगे तो दूसरी ओर उन्हें बलि व यज्ञ द्वारा संतुष्ट करने लगे। इस प्रकार ब्राह्मण संस्कृति कर्मकाण्ड प्रधान संस्कृति रही। उपनिषदों के पूर्व वहाँ आत्मविद्या, तप, त्याग, मुक्ति संन्यास, मोक्ष जैसी शब्दावलियाँ दृष्टिगोचर नहीं होती। वेदों में संहिता के अन्तिम भाग में ईशावास्य आदि उपनिषद् मिलते हैं, वे विद्वानों की दृष्टि में परवर्ती काल में जोड़े गये हैं। श्रमण संस्कृति आत्मोन्नयन और त्याग तपस्या की संस्कृति है। 'श्रमण' का अर्थ है श्रम, शम, सम का साधक मुनि। श्रम अर्थात् तपस्या, साधना एवं स्वयं के पुरूषार्थ पर विश्वास, शम-स्वयं के राग-द्वेष का शमन करना, शांत * डॉ. सागरमलजी जैन, स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास, पृ. 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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