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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ छत बनूड़ में सं. 1974 में जैन आर्हती दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के अवसर पर आपने अनेक संस्थाओं को दान दिया। दीक्षा के समय आपके लिये पटियाला से स्वर्ण पालकी मंगाई गई थी। आप महासती पन्नादेवीजी की शिष्या बनीं। आपका स्वर मधुर और सुरीला था। अंत समय में असह्य वेदना को समभाव से सहन कर सं. 2000 में आप स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी दो शिष्याएँ थीं-श्री पद्मश्रीजी एवं श्री श्रीमतीजी।133 6.3.2.38 श्री गुणवन्तीजी (सं. 1975-78) आप लुधियाना के श्रीमंत खानदान की कन्या एवं पुत्रवधु थी, पति के स्वर्गवास के पश्चात् भोगों से विरक्त हो गईं। श्री पन्नादेवीजी के पास आश्विन शु. 5 को होशियारपुर में आप दीक्षित हुई। उस समय आप स्वर्ण की पालकी में बैठकर दीक्षा स्थल तक दीन-दुखियों को मुक्त हस्त से दान देती हुई गईं तथा दीक्षा-प्रसंग पर लोगों को स्वर्ण की अंगूठियां भेंट की। दीक्षा के कुछ ही दिन बाद आप बीमार हो गईं और सं. 1978 में स्वर्गवासिनी हो गईं। आप बहुत विनीत, सेवाभावी एवं सहनशीला थीं।134 6.3.2.39 श्री हंसादेवीजी (सं. 1977) आप हैदराबाद (आं. प्र.) के लाला शिवसहायमलजी जौहरी की सुपुत्री थीं, देहली में लाला बुधसिंहजी जौहरी के सुपुत्र ला. हीरालालजी के साथ सं. 1951 में विवाह हुआ, पतिवियोग के पश्चात् 36 वर्ष की उम्र में द्रौपदांजी महाराज के पास दीक्षित हुईं। आपने 25 सूत्रों का अभ्यास किया था, आप अत्यंत विदुषी धर्मप्रभाविका साध्वी थीं। 6.3.2.40 श्री शीतलमतीजी (सं. 1977) आप केकड़ी (राज.) के उच्च माहेश्वरी परिवार के सेठ भोलानाथ की कन्या थीं, 9 वर्ष की उम्र में आपका विवाह सेठ लक्ष्मीनारायणजी से हुआ, उसी वर्ष उनका देहान्त हो जाने से सं. 1977 को 27 वर्ष की उम्र में धनदेवीजी के पास दीक्षित हो गईं। आप विनयवान व विदुषी साध्वी थीं। आपकी एक शिष्या हैं-उपप्रवर्तिनी श्री कैलाशवतीजी।।36 6.3.2.41 श्री धर्मवतीजी (सं. 1977) आप पुरपांची जि. रोहतक के चौधरी रामबक्श जाट की सुपुत्री थीं। छः वर्ष की उम्र में ही आपका विवाह हो गया, 8 वर्ष की थीं तब किसी साधु के इन वचनों को श्रवण कर कि 'जो मनुष्य धर्म नहीं करता उसे 84 लाख जीवायोनि में परिभ्रमण करना पड़ता है' आप संसार से विरक्त हो गईं। परिवारीजनों के बहुत समझाने पर भी मार्गशीर्ष कृ. 10 सं. 1977 में आपने श्री मोहनदेवीजी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। 19 वर्ष की आयु में 133. संयम गगन की दिव्य ज्योति, पृ. 225 134. साधना पथ की अमर साधिका, पृ. 135 135. महासती द्रौपदांजी का जीवन चरित्र, पृ. 207 136. वही, पृ. 208 581 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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