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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
स्यालकोट के लाला भोलूशाहजी ओसवाल के कनिष्ठ पुत्र पन्नालालजी के साथ कर दिया परन्तु उसी वर्ष फाल्गुन मास में उनका देहान्त हो गया। पति के स्वर्गवास के पश्चात् आपने महासती द्रौपदांजी के उपदेशामृत से प्रेरित होकर चैत्र सुदी पंचमी संवत् 1967 में संयम अंगीकार कर लिया। आप इतनी संयमनिष्ठ थीं, कि 16 वर्ष तक भयंकर चम्बल रोग से ग्रस्त होती हुई भी उसके उपचार स्वरूप न कभी दवा ली, न लेप रूप में ही कोई दवा लगाई। धीरे-धीरे अस्वस्थता बढ़ती गई, और रोहतक में सं. 2016 की असोज सुदी पंचमी मंगलवार के दिन स्वर्गवासिनी हो गई। आपकी 4 शिष्याएँ थीं-श्री शीतलमती जी, मनोहरमतिजी, धर्मवतीजी, लोचनमतीजी।।27
6.3.2.32 महार्या मोहनदेवीजी (सं. 1970-2023)
श्री मोहनदेवीजी का जन्म दिल्ली सुराणा गोत्रीय श्री कल्लूमलजी जैन के यहां धर्मनिष्ठ माता गेंदादेवीजी की कुक्षि से वि. सं. 1937 (सन् 1880) कार्तिक कृष्णा 10 को हुआ। 5 भाई और 6 बहनों में आप सबसे ज्येष्ठ थीं। 11 वर्ष की उम्र में ही आपका विवाह दिल्ली के सुप्रसिद्ध जौहरी श्री खुशहालचंदजी के सुपुत्र जगन्नाथजी नाहर के साथ हुआ। 3 वर्ष पश्चात् ही पति का स्वर्गवास हो गया। वैधव्य के इस दु:ख को वरदान स्वरूप बनाने के लिये 12 वर्षों तक आपने संयम के लिये सतत संघर्ष किया पश्चात् संवत् 1970 पोष कृष्णा 5 के दिन देहली में ही श्री द्रौपदांजी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् समाज की कुरीतियों को दूर करने एवं स्त्री को शिक्षित व स्वावलम्बी बनाने की और आपके विशेष प्रयास रहे। इसके लिये आपने स्थान-स्थान पर महिला संगठन बनाकर साप्ताहिक सत्संग प्रारंभ करवाये। महिलाओं को जैनधर्म व उसके सिद्धान्तों का परिचय कराया। दिल्ली में प्रथम बार महिला-स्थानकों का निर्माण होने लगा। आप द्वारा प्रेरित जैन महिला स्थानक सब्जीमंडी, दिल्ली, महासती मोहनदेवी जैन सिलाई शिक्षण केन्द्र, मोहनदेवी जैन कन्या पाठशाला, भगवान महावीर होस्पीटल दिल्ली, जैन कन्या पाठशाला हांसी आदि संस्थाएँ आज भी खूब कार्यरत हैं। 53 वर्षों तक जिनशासन की महती प्रभावना करती हुई 86 वर्ष की आयु में आप महिला स्थानक, दिल्ली में सन् 1966 मगसिर कष्णा 2 बुधवार सायं 4 बजे स्वर्गवासिनी हो गईं। आपकी 4 शिष्याएँ हुई। विमलमतीजी, रोशनम राजेश्वरीजी। इनमें श्री रोशनमतीजी और राजेश्वरीजी की ही शिष्या परम्परा चली।128
6.3.2.33 श्री लज्जावतीजी (सं. 1971-2037)
आपका जन्म जावरा के श्रेष्ठी श्री रामलालजी कटारिया के यहां श्रीमती गंगादेवीजी की कुक्षि से संवत् 1959 में हुआ। अपने सहोदर भ्राता मुनि श्री हजारीलालजी महाराज की प्रेरणा से 11 वर्ष की अल्पायु में कार्तिक कृष्णा सप्तमी संवत् 1971 के शुभ दिन लाहौर में श्री चंदाजी महाराज के पास दीक्षा अंगीकार कर ये श्री श्रीमती जी की शिष्या बनीं। आपका विचरण क्षेत्र राजस्थान, यू. पी., हरियाणा, पंजाब, मालवा आदि रहा। 66 वर्षों तक संयम का सानन्द पालन करती हुईं अंत में संवत् 2037 में 10 दिन के संथारे के साथ लुधियाना में स्वर्गस्थ हुईं। अनशन के 10 दिनों तक आप सुखासन की स्थिति में अडोल, अचल स्थिर रहीं, यह आपकी सुदीर्घ साधना का प्रतिफल था। आपके जीवन के तीन प्रेरक संदेश थे-विनय, विवेक, और वैराग्य। पठन-पाठन, जप, स्वाध्याय आपको अत्यधिक प्रिय थे. रात्रि में 12 बजे. दो बजे फिर चार बजे उठ-उठकर ध्यानस्थ हो जाते थे। सबके साथ
127. वही, पृ. 204 128. लेखिका-साध्वी हुक्मदेवीजी, दिव्यविभूति महासती मोहनदेवीजी
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