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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
मोहनऋषिजी म. के मुखारविन्द से भागवती दीक्षा अंगीकार कर आप महासती श्री उज्जवलकुमारीजी की शिष्या बनीं। आपके अन्तर्मानस में ज्ञान संस्कारों का सिंचन करने में विनयकुंवरजी महासतीजी का भी पूर्ण योग रहा है। आपमें सरलता उदारता एवं वाणी में अत्यधिक मधुरता का संगम है। हिन्दी, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत आदि भाषाओं पर आपका प्रभुत्व है। आपके चुंबकीय व्यक्तित्व से आकर्षित होकर 21 मुमुक्षु कन्याएं संयम साधना में अग्रसर हुई हैं। आपने जहां भी चातुर्मास किये, वहाँ लोक मंगलकारी शिविर, स्वधर्मी सहायता एवं शिक्षण हेतु फंड, धार्मिक शिविर आदि जनोपयोगी विविध कार्य हुए। सन् 1994 में आपको महाराष्ट्र प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया। 9 वर्षों तक इस पद का कुशलता पूर्वक निर्वाह कर सन् 2003 में आप देवलोकवासिनी हो गई। आपकी स्मति में श्री विनय उज्जवल भारतमाता प्रमोदसधाजी महाराज बहउद्देशीय संस्था एवं पथ सरक्षा संगठन की स्थापना आपकी शिष्या डॉ. साध्वी प्रियदर्शनाजी के मार्गदर्शन में हुई है। आपकी अन्य शिष्याओं में श्री दिव्यदर्शनाजी, सम्यक्दर्शनाजी, सत्यप्रभाजी, विश्वदर्शनाजी आदि प्रमुख हैं। 6.3.1.54 आचार्य श्री चन्दनाजी (सं. 2009-वर्तमान) ___पूना जिले के चासकमान निवासी श्रीमान् माणकचंदजी कटारिया की धर्मपत्नी श्री प्रेमकुंवरबाई की कुक्षि से सं. 1995 में जन्म लिया। वैराग्य अवस्था में ही 900 मील की पैदल यात्रा कर गुलाबपुरा (राज.) में आचार्य श्री आनंदऋषिजी के मुखारविन्द से चैत्र शु. 2 सं. 2009 को दीक्षा ग्रहण कर, आप श्री सुमतिकुंवरजी की शिष्या बनीं। आपकी बुद्धि तीव्र और निर्मल थी, धारणाशक्ति भी अच्छी होने से शीघ्र ही सभी आगम, न्याय, तर्क, व्याकरण, भाषा ज्ञान आदि का अध्ययन कर लिया। जैन सिद्धान्ताचार्य एवं दर्शनाचार्य जैसी उच्चकोटि की परीक्षाएँ भी दी। इस दौरान 12 वर्ष तक मौन अध्ययन किया, आयंबिल का वर्षीतप एवं मासक्षमण जैसी उत्कृष्ट तपस्याएँ भी की। प्रगतिशील विचारों की धनी आचार्य चन्दनाजी 1973 ई. से भगवान महावीर की समवसरण भूमि राजगृह में 'वीरायतन' की परिकल्पना को साकार रूप देकर पल्लवित और पुष्पित करने उपाध्याय अमरमुनिजी महाराज की प्रेरणा से जुड़ी और तभी से वाहन विहारिणी होने से ऋषि संप्रदाय एवं श्रमण-संघ से इनका संबंध विच्छिन्न हो गया। वीरायतन की भूमि पर इन्होंने शिक्षा एवं सेवा से संबंधित अनेक लोक मंगलकारी कार्य किये।
आदिवासी बच्चों को शिक्षा-संस्कार देने हेतु 'वीरायतन शिक्षा निकेतन विद्यालय' की स्थापना की, नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम्' के माध्यम से आजतक 6.5 लाख रोगियों के आंखों की जांच तथा शल्य चिकित्सा हो चकी है. पोलियो एवं दंत-चिकित्सा के कार्य भी होते हैं. इस नि:शल्क सेवा से प्रतिलाभित जन शराब. शिकार. मांसाहार. बलि आदि का भी त्याग करते हैं। आप द्वारा स्थापित 'ब्राह्मी कला मंदिर' इतिहास. संस्कति और धर्म का समेल है. तो 'ज्ञानाञ्जलि' में महत्वपूर्ण ग्रंथों का संकलन है, 'अमरसर्वतोभद्रम्' नाम से ध्यान-केन्द्र भी प्रस्थापित हुआ है। तार्किक शोधपूर्ण अध्ययन हेतु 'चंदना विद्यापीठ' लंदन, केनिया, अमेरिका और अप्रिफ्रका में स्थापित हुआ है। जखनिया तथा रूद्राणी में वीरायतन विद्यापीठ, लछुवाड़ तथा पावापुरी में 'तीर्थंकर महावीर विद्या मंदिर, नवल वीरायतन (पूना) आदि संस्थाएँ चंदनाजी के निर्देशन में सतत गतिशील हैं। आपकी योग्यता, विद्वत्ता एवं बृहद् स्तर पर किये जाने वाले रचनात्मक कार्यों का मूल्यांकन कर 26 जनवरी 1987 में 79. ऋ. सं. इ., पृ. 382 80. (क) ऋ. सं. इ., 363 (ख) डॉ. श्री प्रियदर्शनाजी से प्राप्त सामग्री के आधार पर
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