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________________ अध्याय 6 स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6 (क) धर्मवीर लोकाशाह और उनकी धर्मक्रांति जैन मध्ययुग के इतिहास को यदि हम क्रियोद्धारकों का इतिहास कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। धर्म के आगम-सम्मत स्वरूप एवं विशुद्ध श्रमणाचार में चैत्यवासी परम्परा द्वारा उत्पन्न की गई विकृतियों के उन्मूलन के लिये समय-समय पर महापुरूषों द्वारा क्रियोद्धार किये गये श्वेताम्बर - परम्परा में मूर्तिपूजा के विरुद्ध अपना स्वर मुखर करने वालों से लोकाशाह प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने जो क्रियोद्धार का शंख फूंका, वह उनके द्वारा लिखित कामत प्रतिबोध कुलक, लोंकाशाह के 34 बोल, 58 बोल की हुंडी, लोंकाशाह द्वारा द्रव्य - परम्परा के कर्णधारों को पूछे गये 13 प्रश्नों द्वारा प्रगट होता है। लोकाशाह ने तत्कालीन समाज में व्याप्त जिनप्रतिमा, जिनप्रतिमा निर्माण, पूजन, मंदिर निर्माण और जिनयात्रा की हिंसा से जुड़ी हुई प्रवृत्तियों को भी धर्म विरूद्ध बताया और आडम्बर रहित शुद्ध धर्म का उपदेश देना प्रारंभ किया । इन्हीं दिनों सिरोही, अरहट्टवाड़ा, पाटण और सूरत ये चार संघ यात्रा करते हुए अमदाबाद आये। लोकाशाह के साथ इनकी विस्तृत धर्मचर्चा हुई, उससे प्रभावित होकर संघपति नागजी, दलीचंदजी, मोतीचंदजी और शम्भूजी के नेतृत्व में 45 मुमुक्षु जन वैराग्य के प्रगाढ़ रंग से अनुरंजित होकर शुद्ध आचार निष्ठ श्रमणधर्म में दीक्षित हुए। यह घटना वि. सं. 1531 (ई. 1474) की ज्येष्ठ शुक्ला 5 को हुई। कहीं कहीं 45 व्यक्तियों में लखमसी जी, नूनांजी, शोभाजी, डूंगरसीजी, भाणांजी प्रमुख व्यक्तियों का लोकाशाह की प्रेरणा से यति परम्परा में दीक्षित होने का उल्लेख है। 2 लोकागच्छ में आगे चलकर रूपाजी से गुजराती लोंकागच्छ (सं. 1568) श्री हीरागरजी से नागोरी लोंकागच्छ (सं. 1580) सदारंगजी से लाहौरी लोंकागच्छ ( सं. 1608) की स्थापना हुई। उक्त गच्छों में जब मतभेद एवं पारस्परिक अनैक्य के कारण अनेक दोष उत्पन्न हो गये, धर्म के उपदेष्टा अपने लक्ष्य से च्युत होने लगे तब ऐसे विकट समय में पुनः क्रियोद्धार का संदेश लेकर 6 महापुरूष इस धरा धाम पर अवतरित हुए, वे छः महापुरूष थेश्री जीवराजजी, श्री लवजीऋषिजी, श्री धर्मसिंहजी, श्री धर्मदासजी, श्री हरजीऋषिजी, श्री हरिदासजी, लाहौरी। इन सबका समय 17वीं, 18वीं सदी के मध्य का है। 1. आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिः प्रभापुंज श्री लोंकाशाह, श्रमणसंघ ज्योति, वर्ष 1 अंक 6 नवंबर - 2003 2. डॉ. सागरमल जैन डॉ. विजयकुमार जैन स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास पृ. 142 Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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