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5.8.73 साध्वी श्री सरूपांजी (संवत् 1800 )
खरतरगच्छ के उपाध्याय समयसुंदर की कृति 'प्रियमेलकरास' की प्रतिलिपि पं. विजय ने संवत् 1800 में मेड़ता नगर में करके साध्वी सरूपांजी को वाचनार्थ दी। प्रति विजयनेमीश्वर भंडार खंभात (नं. 4482) में है | 656
5.8.74 आर्या श्री ज्ञानकुंवरी (संवत् 1833 )
खरतरगच्छ के हेमराज कृत 'रात्रिभोजन चौपाई' ( रचना संवत् 1738 ) की हस्तप्रति संवत् 1833 में आर्या केसरजी की शिष्या ज्ञानकुंवरी द्वारा बीकानेर में लिखी जाने का उल्लेख है। प्रति पंन्यास गुलाबविजयजी अमदाबाद भंडार में है 1657
5.875 साध्वी श्री मयाजी ( संवत् 1835 )
खरतरगच्छ के जिनोदयसूरि की 'हंसराज वच्छराज नो रास' (संवत् 1680) को संवत् 1835 कार्तिक कृ. 6 रविवार की प्रतिलिपि कर्त्ता में साध्वी कुसलाजी की शिष्या 'मयाजी' का नाम है। यह प्रति गुलाबकुमारी लायब्रेरी कलकत्ता (नं. 55 - 14 ) में है 1658
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
5.876 साध्वी श्री पूतां / पूलांजी ( संवत् 1843 )
इनके लिये खरतरगच्छ के धर्मसिंह पाठक की रचित 'अमरकुमार सुरसुंदरी नो रास' (संवत् 1736 ) की संवत् 1843 पोष कृ. रविवार को वीकानेर में प्रतिलिपि की गई। यह प्रति उपा. जयचन्द्र नो भंडार वीकानेर (पोथी 66) में है 1659
5. 8.77 साध्वी श्री ज्ञानश्रीजी ( संवत् 1847 )
तपागच्छीय केसरविमलसूरिजी की 'सूक्तमुक्तावली' (संवत् 1754) की प्रतिलिपि संवत् 1847 पोष शु. 12 रूपचन्द वासानगर में ज्ञानश्री के पठनार्थ की। यह प्रति अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर (नं. 3758) में है 1 660
5.8.78 आर्या श्री हरितश्री (19वीं सदी)
श्री फतेन्द्रसागर की 'होलिका व्याख्यान सस्तबक ( रंचना संवत् 1822) की प्रतिलिपि हरितश्री ने पाली में की। प्रति बी. एल. इन्स्टी. दिल्ली (परि. 6721 ) में श्रेष्ठ स्थिति में है।
656. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 329
657. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 352
658. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 151
कतिपय विदुषी आर्यिकाओं की रचना, चंदाबाई अ. ग्रं., पृ. 576
659. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 294
660. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 136
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