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श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ 5.8.66 साध्वी श्री जीवाजी (संवत् 1787)
खरतरगच्छीय धर्ममंदिरगणि' की 'परमात्म प्रकाश चौपाई' (संवत् 1742) की प्रतिलिपि पं. लाषणसी ने संवत् 1787 पोष कृ. 14 वीकानेर में साध्वी जीवा वाचनार्थ की। प्रति जैनशाला अहमदाबाद (दा. 13 नं. 16) में है।650 5.8.67 साध्वी श्री दीपाजी (संवत् 1788)
खरतरगच्छीय उपाध्याय समयसुंदर कृत 'नलदवदंती रास' (संवत् 1673 की रचना) की प्रतिलिपि सागरचन्द्रसूरि शाखा के पं. चतुरहर्षजी ने करके विक्रमपुर नगर में रेषाजी की शिष्या जगसाजी उनकी शिष्या दीपा को वाचनार्थ दी। यह प्रति विजयनेमीश्वर ज्ञानमंदिर, खंभात (नं. 4494) में है।651 5.8.68 श्री लक्ष्मीश्रीजी (संवत् 1796)
जिनादिविजयरचित 'श्री दंडकस्तबकः' संवत् 1796 में पं. मेघविमलजी ने सूरत में श्री लक्ष्मीश्रीजी के पठनार्थ लिखा। यह प्रति श्री विजयदानसूरि शास्त्र भंडार छाणी में संग्रहित है।652 5.8.69 साध्वी श्री लक्ष्मीजी (संवत् 1798)
संवत् 1798 पोष कृ. 11 गुरूवार को पं. गणेशरूचि गणि ने 'क्षेत्रसमास स्तबक' की प्रतिलिपि साध्वी लक्ष्मी के लिये तैयार की। प्रति विजयदानसूरि शास्त्र संग्रह छाणी में है।653 5.8.70 साध्वी श्री हरखांजी (18वीं सदी)
खरतरगच्छ के मतिकुशल रचित 'चंद्रलेखा चौपाई' (रचना संवत् 1728) की प्रतिलिपि श्री नयचंद ने साध्वी हरखां निमित्त तैयार की। प्रति उपाध्याय जयचंद्रजी नो भंडार बीकानेर (पोथी 63) में है।654 5.8.71 साध्वी श्री वाल्हाजी (18वीं सदी)
बृहद् तपागच्छीय नयसुंदर रचित 'प्रभावती उदायन रास' (संवत् 1640) की प्रतिलिपि संवत् 174 फाल्गुन शु. 7 रविवार राजनगर में साध्वी मेधा की शिष्या वाल्हा ने की। प्रति पाटण भंडार (दा. 9 नं. 16) में है।655
5.8.72 आर्या श्री वारोजी (18वीं सदी)
ये आर्या पूरणा की शिष्या आर्या नयणा की शिष्या थीं, इनके लिये 'चउसरण पइन्ना' की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है। प्रति सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 650. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 327 651. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 334 652. प्रशस्ति -संग्रह, पृ. 261, प्र. 992 653. (क) जै. गु. क. भाग 5, पृ. 394 (ख) प्रशस्ति -संग्रह, पृ. 323, प्र. 1263 654. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 422 655. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 101
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